Bijnor: जनपद के कस्बा हल्दौर की इस आलीशान जामा मस्जिद का निर्माण 1855 में अहमदुल्ला खाँ ने झोपडे नुमा कराया था, जिस का पक्का निर्माण 1857 में हुआ। 1857 की क्रान्ति में इस मस्जिद में नहटोर शेरकोट नगीना के क्रांतिकारी अक्सर एकत्र होते थे और अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार करते थे क्रुर जार्ज पामर के खिलाफ प्रमुख रूप से सम्मिलित होते थे।हल्दौर से अहमदुल्ला खाँ के जाने के बाद पूरे कस्बे मे आग लगा दी गयी केवल तीन घर बचे थे
जिस जगह पर मस्जिद तामीर कराई गयी थी उस जमाने मे वहा पर गहरी खाई व नाला था रातोरात ग्राम पीलाना मे लखोरी ईटो को पकाया गया था 28 अगस्त बरोज जुमा जोर्ज पामर व उसकी फोज ने हल्दोर को घेर लिया ओर हल्दोर के छिपीयो हल्वाई कुम्हारो को जमकर मारा पीटा
ओरतो को केद कर कोठी मे बन्द कर दिया आदमी व बच्चे जख्मी हो कर चाँदपुर भाग गये चोधरी रणधीर ने हल्दोर के मुसलमानो को वापस लाकर दोबारा से बसाया पूरे हल्दोर को फिर से घास फूस के घरो से बसाया गया मस्जिद में 22 जून 1857 को नहटोर के मौलवी महमूद हसन ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तकरीर की जिसका यहां की जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा और अंग्रेजों के खिलाफ क्रान्ति की शुरुआत हुई
यहां पर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी इसकी जानकारी जब अंग्रेजी हुकूमत को हुई तो उन्होंने मस्जिद पर हमला कर दिया और यहां पर इस्माइल छिपी को अजान देते समय गिरफ्तार कर लिया गया इसके साथ ही अंग्रेजों से अपनी अस्मत बचाने के लिए तमाम महिलाए ग्राम अम्हेडा मे चली गयी
अनेको क्रांतिकारियों को हल्दोर के कब्रिस्तान मे दफ नाया गया था लेकिन पक्की कब्र न होने की वजह से अब उनका कोई अभिलेख नही है स्वतंत्रता की लड़ाई नवाब महमूद अली खां के नेतृत्व में हिंदू और मुसलमान दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर शुरू की थी
इनमें बिजनौर के मोहल्ला चौधरियान निवासी जोधा सिंह और नैन सिंह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है लेकिन अंग्रेजो कि अपनी फूट डालो और राज करो की नीति कुछ गद्दार हिन्दुस्तानीयो की मदद से चलाते रहे।
लड़ाई में शामिल शेरकोट निवासी माढे़ खां को नवाब साहब ने युद्ध के दौरान हुए खर्च और आगे लड़ने के लिए धन की व्यवस्था करने का काम सौंपा था, लेकिन बाद मे अंग्रेजों से लड़ते हुए नवाब महमूद अली खां की फौज हार गई। इस हार का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि सैकड़ों हिन्दू-मुस्लिमों को तोपों से बांध कर शहीद कर दिया गया
अंग्रेजों की सेना ने नजीबा बाद नगीना हल्दोर में खूब तांडव मचाया। नवाब के परिजनों को एक-एक करके मार डाला गया और पत्थरगढ़ के किले पर भीषण गोलाबारी की गई। बिजनौर के पामरगंज बाजार में तत्कालीन ज्वाइंट मजिस्ट्रेट जार्ज पामर के आदेश पर बेगुनाह सैकड़ों बिजनोरियो को गोली मारकर शहीद कर दिया गया।
इसके बाद अंग्रेज दोबारा एक विजेता की हैसियत से बिजनौर की धरती पर उतरे थे विद्रोह के बाद बिजनौर में भी देश भक्तों की वीरता और कुर्बानी रंग लाई थी। तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर एलेक्जेंडर शेक्स पियर को अपनी व अन्य अंग्रेजों की जान बचाने को जिला बिजनौर छोड़ देने का फैसला करना पड़ा था। उसने नजीबाबाद के नवाब महमूद अली खां को बुलाकर जिला लिखित रूप में जिला उनके हवाले कर दिया था
12 मई 1857 को बिजनौर तत्कालीन जिलाधिकारी एलेक्जैंडर शेक्सपियर ने समाचार की पुष्टि के लिए संदेश वाहकों को मेरठ के लिए रवाना कर दिया। गंगा के रावली व दारानगर घाटों पर स्वतंत्रता सेनानियों के जमा होने के कारण संदेश वाहक वापस लौट आये। उन दिनों बिजनौर मुख्यालय पर लगभग 20 अंग्रेज अधिकारी थे। इनमें ज्वांइट कलक्टर जार्ज पामर, जोंस, मर्फी और उनका परिवार आदि थे।
अंग्रेज अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए जिलाधिकारी के निवास पर एकत्रित होकर बाहर निकलने के उपाय सोचने लगे। 17 मई 1857 को रावली घाट पर बिजनौर का हाल का जानने के लिए यात्रा कर रहे अंग्रेजों का एक हरकारा लूट लिया गया। चारों ओर से बिजनौर का सम्बंध विच्छेद हो गया। रुड़की से 300 हथियारबंद सैनिक नजीबाबाद पहुंचे और नवाब महमूद अली से जिले की बागडोर संभालने की मांग की। नवाब महमूद अली खां अपनी सेना लेकर बिजनौर मुख्यालय पर आ पहुंचे
20 मई को स्वतंत्रता सेनानियों ने बिजनौर पर आक्रामण किया और जिला कारागार का मुख्य द्वार तोड़ डाला। समस्त कैदी विद्रोह करते हुए जेल से बाहर आ गए।
नवाब महमूद अली खां जिलाधिकारी निवास के सम्मुख अहाते में अपनी सेना सहित शिविर लगाकर जम गये।जान बचाने के लिये अंग्रेज कलक्टर एलेक्जेंडर शेक्सपियर को भागना पडा तो दोस्तो याद रखिए किसी के नसीब में गुलामी का अंधेरा था इसीलिए आज हमारे नसीब में आजादी का सवेरा है
कभी अंधेरे में उजाले का इंतजार करते-करते बेगम सुल्तान जमानी और फिरोज शाह जैसे लाखों लोग हमारी आजादी पर कुर्बान हो गए। अब वर्षों बाद जब यह रोशनी मिली है तो इसकी हिफाजत करना सीखिए। चाहे आप दीया जलाएं या न जलाएं, मगर मेहरबानी कर किसी का घर व दिल तो न जलाएं
प्रस्तुति —– तैय्यब अली
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