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जानिए मुग़लों के वक़्त कैसे मनाया जाता था दशहरा ।

मुग़ल बादशाह औरंगजेब को छोड़कर सारे मुग़ल बादशाहों ने हर हिंदुस्तानी त्योहार को धूमधाम से शाही अंदाज में मनाया करते थे जिसके शुरुआत अकबर ने की थी जो आखरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर तक चलती रही।

मुग़ल दरबारी मुंशी फैजुद्दीन लिखते है दशहरे की सुबह बहादुरशाह ज़फ़र सबसे पहले किले की बालकनी से खड़े होकर नीलकण्ठ पक्षी देखते थे जो हिंदू धर्म के अनुसार दशहरे के दिन नीलकंठ देखना शुभ माना जाता है। फिर दोपहर होते ही किले से शाही सवारी निकलती थी जो किले के पीछे यमुना नदी के किनारे बने रामलीला स्टेज तक जाती थी।

इतिहासकार राना सफ़वी लिखती है दिल्ली की प्रसिद्ध रामलीला 350 साल पहले शाहज़हां ने शाहजहानाबाद (पुरानी दिल्ली) में शुरू की थी जो आज तक चली आ रही है।

दशहरे वाले दिन बादशाह अपने हाथों से नीलकण्ठ पक्षी उड़ाते और उसके बाद शाही रामलीला स्टेज पर रामचरित मानस का उर्दू और फ़ारसी में पाठ किया जाता था। अजमेरी गेट के पास एक शाहजी का तालाब था। जिसमे वनवास के दौरान राम लक्ष्मण सीता सरयू नदी पार करते थे। लेकिन 1857 क्रांति के बाद बहादुर शाह ज़फ़र को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और शाही रामलीला बन्द हो गई।

नफरत के दौर में अब ये सब मायने नही रखता की मुग़लो ने क्या किया क्यो किया उनके लिये तो मुगल दुश्मन थे, लुटेरे थे सब कुछ लूटकर ले गए, कहाँ ले गए नही पता शायद रंगून में बहादुर शाह जफर के उस छोटे से कमरे में जहां आखरी सांस ली

रिपोर्ट : बिजनौर एक्सप्रेस ख़बर सबसे तेज़

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