🔹बिजनौर के हर गांव में हरियाली लहलहाते खेतों में दौड़ती मिल जाएगी नील गाय,
Bijnor: नीलगाय नाम तो सुना ही होगा बता दें कि यह एक शक्तिशाली प्राणी है जो बिजनौर के जंगलो मे बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह प्राणी हमेशा चर्चा में रहता है चलिए जानते हैं इस प्राणी के बारे में कुछ खास बातें-
नीलगाय किस प्रजाति का है इसको लेकर इतिहास एकमत नहीं दिखाई देता। हालांकि
इस के डीएनए की जांच से पता चला कि बकरी, भेड़ प्रजाति गौवंश या हिरण प्रजाति के जानवरों से मिलकर नीलगाय बनी है 1000 साल पहले लिखे गए “ऐतरेय ब्राह्मण” में भी नीलगाय का जिक्र मिलता है नवपाषाण काल और सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी मानव नीलगाय के संपर्क में थे।
मुगल काल के दौरान इनके शिकार का भी जिक्र मिलता है नील उर्दू शब्द है जबकि गाय हिन्दी मुगल बादशाह औरंगजेब के समय में इसे नीला घोड़ा कहा जाता था यह अधिक भारी भरकम होता है और कई बार तो बाघ भी इसका शिकार नहीं कर पाता यह इतना अधिक ताकतवर होता है कि इसकी टक्कर से छोटी मोटी गाड़ियां भी पलट जाती हैं
नील गाय घने जंगल में जाने से परहेज करती है और घास कंटीली झाड़ियों व गन्ने के खेतो में रहना पसंद करती है यह बिना पानी पिए कई दिन तक रह सकती है और खराब से खराब सतह पर बिना थके लंबी दूरी तक दौड़ सकती है यह कम आवाज करता है लेकिन हमला होनर के वक्त बेहद तेज आवाजें निकालती है।
नीलगाय की सबसे बड़ी खासियत है सूंघने की क्षमता कोसों दौड़कर सीधे हरे भरे खेत में एसे कूद जाती हैं मानो इनको पता लगता है कि किस खेत में घनी हरियाली है एक क्वालिटी और है नर और मादा दोनों अलग अलग झुंड में रहते हैं,
इनके झुंड की क्वालिटी देखो जब इनको सुस्ताना होता है तो खुले मैदान में आपस में पीठ टिकाकर बैठते हैं पूरी तरह सतर्क होकर पीठ ऐसे टिकाते हैं कि हर तरफ किसी न किसी का सिर रहे जरा सा खतरा देखते ही सब निपटने को तैयार रहती है
नील गाय के बच्चो कि पैदा होते ही पूरे झुंड की जिम्मेदारी होती हैं किसी एक माँ पर उनका बोझ नहीं होता जब भी भूख लगे किसी भी नीलगाय का दूध पी लेते हैं हमारी घरेलू गायों में ऐसा हो सकता है क्या भला लात मार के मुंह तोड़ देंती है बछड़े का किसानो के लिए नीलगाय भले कितनी सत्यानाशी हो लेकिन नीलगाय का कोई मोल नहीं है
प्रस्तुति———-तैय्यब अली