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बिजनौर के नजीबाबाद निवासी इस टाईगर की कहानी जो पाकिस्तान से लेकर अपने ही सिस्टम से लड़ा लेकिन कोरोना से जंग हार गया

◾1985 में मनोज रंजन दीक्षित को नजीबाबाद से रॉ में भर्ती किया गया।

◾दो बार सैन्य प्रशिक्षण के बाद उन्हें पाकिस्तान भेजा गया।

◾मनोज रंजन दीक्षित का पाकिस्तान में जासूसी के दौरान नाम यूनुस, युसूफ और इमरान था।

◾प्राइवेट अस्पताल में चला इलाज कोरोना से हुआ था निधन नहीं मिली थी सरकारी मदद।

Bijnor: दुश्मन मुल्क में रहकर हर सितम सह कर भी सही सलामत वापस देश लौटने वाले पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन दीक्षित भी कोरोना से संक्रमित हो गए थे जब पूर्व रॉ एजेंट को संक्रमण होने के बाद सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो लखनऊ के कुछ समाजसेवियों ने उनको डॉक्टर को दिखाया।

एक निजी क्लीनिक में उनको भर्ती कराया गया था । कोविड अस्पताल में भर्ती के प्रयास भी किये। आर्थिक तंगी से जूझ रहे मनोज रंजन ने सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए मदद मांगी थी। लेकिन CMO ऑफिस से रेफरल लेटर बनने में काफी देर हो गई थी

पिछले साल ख़बर आई थी मनोज रंजन दीक्षित आर्थिक संकट से भी जूझ रहे थे नजीबाबाद के रहने वाले मनोज रंजन दीक्षित ने रॉ के लिए जासूसी करने के आरोप में पाकिस्तान में 23 साल यातनाएं झेली। पूरी जवानी पाकिस्तान की जेल में निकाल दी। डेढ़ दशक पहले स्वदेश लौटे मनोज रंजन के पास रहने को मकान तक मयस्सर नहीं था लॉकडाउन ने नौकरी भी ले ली थी। हालात ये थे कि मनोज रंजन दीक्षित खाने-पीने को भी मोहताज हो गए थे।

नजीबाबाद निवासी 56 वर्षीय मनोज रंजन दीक्षित बतौर रॉ का एजेंट बनकर बॉर्डर पार कर वर्ष 1985 में पाकिस्तान पहुंचे। पाकिस्तान में हैदराबाद के सिंध प्रांत में रहकर जल्द ही वहां के लोगों से घुल मिल गया। इमरान नाम से पाकिस्तान में रहकर उसने देश के लिए जासूसी की कमान संभाली।

आजीविका के लिए ट्यूशन को जरिया बनाया। 23 जनवरी 1992 को मनोज रंजन उर्फ इमरान को जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में डालकर तरह-तरह की यातनाएं दीं लेकिन देश के साथ न तो मनोज ने गद्दारी की और न ही कोई राज खोले।

रिपोर्ट्स के मुताबिक 80 के दशक में रॉ में प्रशासनिक सेवाओं की तरह आम नागरिकों को उनकी योग्यता के आधार पर भर्ती किया जा रहा था। 1985 में मनोज रंजन दीक्षित को नजीबाबाद से भर्ती किया गया। दो बार सैन्य प्रशिक्षण के बाद उन्हें पाकिस्तान भेजा गया। उन्होंने पाकिस्तान से बतौर जासूस कई अहम जानकारियां साझा की थीं। कश्मीरियों युवाओं को बहला-फुसलाकर अफगानिस्तान बॉर्डर पर ट्रेनिंग दिए जाने जैसी कई अहम जानकारियां शामिल थीं

आखिरकार! जासूसी के इल्जाम में गिरफ्तार मनोज रंजन को पाकिस्तान को वर्ष 2005 में बाघा बॉर्डर पर मनोज को छोड़ना पड़ा। जिंदगी का कीमती समय पाकिस्तान में गुजारने के बाद स्वदेश लौटे मनोज रंजन दीक्षित को उम्मीद थी कि अब उसकी जिंदगी में नया मोड आएगा।

भारत सरकार उसको वफादारी का इनाम देगी, उसे नौकरी मिलेगी। लेकिन हुआ सब कुछ उसकी सोच के विपरीत। स्वदेश लौटने के कुछ दिनों बाद मनोज रंजन दीक्षित को सरकारी उपेक्षा से निराशा हाथ लगी।

भारत लौटे मनोज रंजन ‌दीक्षित को डेढ़ दशक बीतने के बाद भी रोजी रोटी और रहने के लिए छत मांगने के लिए मनोज प्रदेश की राजधानी से दिल्ली तक तलवे घिसते रहे। उन्होंने ये भी दावा कि था रॉ की ओर से उसे शुरुआती दौर में कुछ आर्थिक मदद मिली थी फिर किसी ने उसकी तरफ मुड़कर नहीं देखा था। आर्थिक तंगियों से घिरे गत सात वर्ष से लखनऊ में रह रहे थे मनोज रंजन ने दो वर्ष पूर्व कैंसर पीड़ित पत्नी शोभा दीक्षित को भी गंवा दिया।

जासूसी के आरोप से मुक्त होकर स्वदेश आए मनोज रंजन दीक्षित ने आजीविका के लिए हरिद्वार जनपद के लिब्बाहेड़ी में एक ईंट भट्ठे पर दो वर्ष मुंशी का काम किया था। वर्ष 2007 में शोभा से दांपत्य सूत्र में बंधे मनोज के जीवन में उस समय संकट के बादल घहराने लगे जब शादी के चंद वर्ष बाद प‌त्नी को कैंसर होने की पुष्टि हुई।

पत्नी के इलाज के लिए वर्ष 2013 से मनोज लखनऊ में थे। वर्ष 2019 में कैंसर पीड़िता पत्नी की मौत के बाद से वह लखनऊ में ही किराए के मकान में रहे। हालांकि मनोज की वृद्घ मां और भाई का परिवार नजीबाबाद में रहता है। मनोज का कहना था कि सामान्य जीवन जी रहे परिवार के लिए वह बोझ नहीं बनना चाहता थे। इसलिए उसने लखनऊ में कई जगह नौकरी की थी

लखनऊ की एक निर्माण कंपनी में बतौर स्टोर कीपर की जिम्मेदारी निभाकर पेट पाल रहे मनोज को लॉकडाउन के दौरान नौकरी से हटा दिया गया था। मनोज रंजन दीक्षित का कहना था कि वह लखनऊ प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक आवास दिलाने और नौकरी लगवाने की गुहार लगा चुका थे

लेकिन देश के लिए सब कुछ गंवाने के बाद किसी ने उसकी ओर मदद के ‌हाथ नहीं बढ़ाए उसके बाद अखबार हिन्दुस्तान ने उनकी कहानी दुनिया को बताई जिसके बाद एक-एक कर मदद के लिए हाथ बढ़ते गए। उनको मकान आवंटित हुआ और कई बड़े समूहों और समाजसेवियों ने आर्थिक सहायता भी दी।

मनोज रंजन दीक्षित का दांपत्य जीवन काफी छोटा रहा। 12 वर्ष के भीतर कैंसर पीड़ित पत्नी शोभा दीक्षित का मार्च 2019 में बीमारी के चलते निधन हो गया था मृत्यु पूर्व पत्नी की अंतिम इच्छा के अनुसार मनोज दीक्षित ने उनकी देह राम मनोहर लोहिया कैंसर संस्थान लखनऊ को कैंसर शोध के लिए प्रदान की थी ।

देश में हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर कैसी स्थिति में पहुंच गया उसकी बानगी है पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन दीक्षित की मौत. जिस शख्स ने देश की खातिर जान लगा दी, पाकिस्तान में काम करते हुए गिरफ्तार हुए और करीब 13 साल पाकिस्तान की जेल में रहे. उस शख्स को सरकारी अस्पताल में बेड नहीं मिल पाया

Edited By : बिजनौर एक्सप्रेस | Bijnor, UP | Updated : जून 17, 2021

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