उत्तराखंड में पिछले दिनों से चली आ रही उठा-पटक अब नये मुख्यमंत्री का नाम सामने आने से थम सी गई है मगर कब तक इसका कोई जवाब किसी के पास नही है क्योंकि उत्तराखंड में मात्र एनडी तिवारी ने अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल सकुशल सम्पन्न किया था नही तो उत्तराखंड गठन के बाद जितने भी मुख्यमंत्री बने है सबको अपने दलों की अंतर्कलह का सामना करना पड़ा है
पिछले दिनों त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भाजपा में अंदरूनी उठा पटक जारी थी जिसे कई मौकों पर मुख्यमंत्री के द्वारा नकारा भी गया मगर जिस तरह से पिछले दिनों यकायक उत्तराखंड की राजनीती में बदलाव हुआ और त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने राजनैतिक विरोधियों के पाले में गेंद डाली जिसके बाद संघ के प्रचारक और छात्र राजनीती से अपना सफर शुरू करने वाले तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा लेकर आयी है, किंतु अगर वास्तविकता के धरातल पर देखा जाये त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा देकर राज्य में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजों से अपना पीछा छुड़ा लिया है
क्योंकि उत्तराखंड की जनता की बहुत सी स्थाई समस्याएं है जिनका किसी की भी सरकार ने निराकरण नही किया है जिसके चलते ऐसे समय मे जब विधानसभा चुनाव सर पर है तीरथ सिंह रावत के सर पर रखा गया ताज कांटो का साबित न हो जाये क्योकि सरकार के एक वर्ष के अल्प कार्यकाल में एक और जनता को नये मुख्यमंत्री से बहुत अपेक्षा होगी वही प्राकृतिक रूप से दुर्गम राज्य में एक साल में बहुत कुछ हो जाये ऐसा संभव नही लगता।
उतराखंड में भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन करके आने वाले समय मे भाजपा को विजय बनाने की बड़ी जिम्मेदारी नये मुख्यमंत्री के ऊपर है, लेकिन क्या वो भाजपा को दोबारा प्रदेश में सत्तासिन करा पाएंगे ये तो भविष्य के गर्भ में है मगर तीरथ सिंह रावत की डगर बहुत आसान नही है।
बिजनौर एक्सप्रेस