कहानी पत्थर गढ़ किले की बावरी की

#नजीबाबाद के रोहिल्ला नवाब #नजीबुद्दौला ने 1755 में शहर के करीब पत्थरगढ किले के साथ इस बावड़ी का निर्माण कराया था।
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बावड़ी या बावली उन सीढ़ी दार कुँओं तालाबों या हौज को कहते हैं जिन के जल तक सीढ़ियों के सहारे आसानी से पहुँचा जा सकता है

यह बावड़ी नवाब साहब कि फौज के लिए पर्याप्त पानी का इन्तजाम करती थी इस कुए से महल सराय तक जाने के लिए एक सुरंग भी थी इस बावली के तमाम ऐसे अनसुलझे रहस्य हैं जो आज तक राज ही हैं अब तो लोग यहां के शांत वातावरण में क्रिकेट खेलने के लिए भी आते हैं इसकी खूबसूरती के कारण में भी यहां खींचा चला आता हूँ!

मशहूर इतिहासकार अशोक मधुप जी बताते हैं सन 1857 मे नवाब महमूद अली खाँ के समय इस किले मे अंग्रेजों ने जम कर तोडफोड की थी बाद मे कुछ वर्षो बाद ब्रिटिश सरकार ने इस किले को भाँतू जाती के लोगो का सुधार ग्रह के रुप मे इस्तमाल किया था
एक दिन समीपुर के निकट नजीबाबाद के शिकारियों व सुल्ताना डाकू के बडे भाई बलवीर सिंह की झडप मे मौत हो गयी थी

सुल्ताना डाकू की गैंग में दर्जनो डकैत शामिल थे सुल्ताना हमेशा अंग्रेजी हुकूमत का ही खजाना लूटता था नजीबाबाद क्षेत्र में सुल्ताना डाकू भगवान की तरह पूजा जाता था धन्नासेठ अंग्रेजों का ठिकाना नैनीताल होने के कारण अग्रेज नजीबाबाद के रास्ते देहरादून जाते थे तभी अंग्रेजों के काफिले को सुल्ताना अपना निशाना बनाता था और जाफराबाद के जंगलों में छिप जाता था सुल्ताना ने कई बार माल से लदी रेलगाडिय़ों तक को भी लूटा था।

एक बार ब्रिटिश पुलिस की दबिश के दौरान सुल्ताना डाकू ने लूटे गये हीरे जवाहरात इस बावली में फेँक दिये थे

सुल्ताना के पकडे जाने के बाद ब्रिटिश ऑफिसर फ्रेडरिक यँग के निर्देश पर ब्रिटिश सरकार ने इस कुए मे खजाना खोजने का प्रयास किया था ब्रिटिश पुलिस विफल हो कर वापस चली गयी थी

सुल्ताना की फाँसी के बाद भी सन 1930 में ब्रिटिश सरकार के इशारे पर इस बावड़ी से सुल्ताना का खजाना निकालने का प्रयास किया गया था

1947 के बाद से अभी तक इस बावड़ी से खजाना निकालने का कोई प्रयास नहीं क्या गया यदि पुरातत्व विभाग नवाब नजीबुद्दौला कि इस बावड़ी का एक्सपर्ट से आकलन कराए तो
सुल्ताना डाकू द्वारा लूटा गया बेशकीमती खजाना हाथ लगने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता हैं

Aasid Aasid

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