किसानों के विरोध को क्यों नज़र अंदाज कर रहीं हैं बीजेपी सरकार

▪️सांसद भवन से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक क्यों चर्चा हो रही है, सांसद में आज इस बिल को लेकर धक्का-मुक्की तक की नौबत आ गई,

▪️देश के सभी किसान व मजदूर संगठन क्यों कर रहे हैं इस बिल का विरोध,

▪️किसान विरोधी बिल पर भारतीय युवा कांग्रेस किसानों के समर्थन में सड़कों पर,

दिल्ली न्यूज़:- किसान विरोधी ऑर्डिनेंस पास होने के बाद देश में व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन होना शुरू हो गया है मोदी सरकार ने इन किसान विरोधी बिलों के खिलाफ देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बावजूद, लोक सभा में प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स और प्राइस एश्योरेंस और फार्म सर्विसेज बिल पारित किए।

सरकार द्वारा लाए गए ये कानून हरित क्रांति के उद्देश्य को पराजित करते हैं और खेती के भविष्य के लिए एक मौत की घंटी होगी और मोदी सरकार किसान को नष्ट करने के लिए नरक में लेकर जा रही है और मुट्ठी भर पूंजीपतियों के लिए किसानों पर वार कर रही है।

मंडी प्रणाली को समाप्त करने से लाखों मजदूरों, कमीशन एजेंटों, मुनीम, लोडर, ट्रांसपोर्टर्स, विक्रेताओं आदि की रोटी और जीविका के साधन छिन जाएंगे। अनाज मंडी-सब्जी मंडी यानी एपीएमसी की व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाएगा। कृषि उपज खरीद प्रणाली। ऐसे परिदृश्य में, किसानों को बाजार मूल्य के अनुसार न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा और न ही उनकी फसल का मूल्य। दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस के प्रभारी डॉ अनिल कुमार मीणा ने बताया कि भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास के नेतृत्व में युवा कांग्रेस द्वारा देश के कोने कोने में किसान विरोधी बिल का विरोध करने के लिए मोर्चा खोल दिया है |

नरेंद्र मोदी लच्छेदार भाषणों से देश के लोगों को लोक लुभावनी बातों में उलझा कर रखता है लेकिन जमीनी धरातल पर देखे तो उनकी सरकारी नीतियों में समाज का शोषण छुपा हुआ है| इससे पहले भी किसानों को अनेक तरीके वादे किए गए लेकिन आज उन तमाम नीतियों में शोषण व्यवस्था बलवती होने के कारण किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गया,

मोदी सरकार द्वारा किसानों के लिए संसद में जो वादा किया था वो पूरा कर दे तो किसान इस कृषि बिल का समर्थन कर देंगे| जैसे 2022 तक किसानों की आय दुगनी कर देने के लिए कहा था लेकिन 2014 मे किसानों की आय 6500₹ महीना थी, आज 1400₹ महीना | इन्फ्लेशन जोड़ देंगे तो 2022 तक ये आय 1000₹ महीने से नीचे रहेगी | वादे में उन्होंने कहा था कि आने वाले समय में किसी भी किसान को आत्महत्या नहीं करने दूंगा ऐसी व्यवस्था स्थापित कर दूंगा लेकिन किसानों की आत्महत्या बढ़ गई इस पर सरकार का कोई जवाब नहीं है|

चुनावी रैलियों में उन्होंने कहा था कि खाद, बीज, पानी, बिजली वगैरह किसानों को मुफ्त दूंगा| 6 साल में क्या किया? किसानी में लागत बढ़ गई | भाषणों में कहा था कि कृषि में 25 लाख करोड़ का सरकारी निवेश होगा| किसानों के लिए यह वादे पूरे होते तो आज भी आत्महत्या करने के लिए मजबूर नहीं होते | फिलहाल मोदी सरकार द्वारा किसान विरोधी ऑर्डिनेंस संसद में पास कर दिया है जिसमें कृषि बिल में मूलभूत मुद्दों पर एक शब्द भी नही है

भारत मे किसानों की समस्या पर सरकार को जानकारी होने के बावजूद भी वह गैर जिम्मेदाराना सौतेला व्यवहार कर रही है | 62 करोड़ किसान और खेतिहर मजदूर भारत भर में आंदोलन कर रहे हैं | 250 से अधिक किसान संगठन भूख हड़ताल पर हैं | इस देशव्यापी बिल के खिलाफ भारत के किसान एकता के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं | लेकिन सरकार ने संसद और संसद के अंदर किसानों की आवाज बंद करने का काम किया। भाजपा शासित राज्यों में प्रदर्शनकारी कृषक समुदाय बेरहमी से पिट रहे हैं। डॉ अनिल मीणा ने कहा कि सरकार अपने पूंजीपति उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुंचाने के चक्कर में देश के अन्नदाता ऊपर पुलिस प्रशासन के माध्यम से लाठीचार्ज करवा कर दमन कर रही है| देश का पालन पोषण करने वाला किसान मोदी सरकार की दमनकारी नीतियों से डरने वाला नहीं है| भारतीय युवा कांग्रेस किसान विरोधी ऑर्डिनेंस का विरोध करने के लिए किसानों के संघर्ष के साथ भागीदार बना रहेगा जब तक सरकार इस बिल को वापस नहीं ले लेती |

नई कृषि अध्यादेश का पूरा खेल एमएसपी के लिए रचा दिख रहा है । मोदी सरकार मण्डी व्यवस्था को पंगु बना किसानो से अनाज खरीदने से छुटकारा पाने की जुगंत भिड़ा रही है। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया( FCI) का लेखा जोखा देखेंगे तो समझ आ जायेगा कि FCI लगातार बजट की कमी से जूझ रहा है और मोरपालक जादू दिखाकर डब्बा गोल करने के फेर में लगा है।
FCI ने मोदीकाल में वर्ष 2016–17 से नैशनल सेविंग स्किम फंड से कर्ज लेना शुरू किया और ~~
वर्ष 2016–17 में 70 हजार करोड़,
2017–18 में 1 लाख 21 हजार करोड
2018–19 में 1 लाख 91 हजार करोड
2019–20 में 2 लाख 54 हजार 600 करोड़
NSSF (नेशनल सेविंग स्कीम फंड) से कर्ज लिया है।

FCI द्वारा फूड सब्सिडी के खर्च के लिए सरकार द्वारा दी गई राशि 2014 के बाद लगातार घटती गई है। 2014 के पहले ये औसत 80–90% तक थी वहीं 2014 के बाद यह 2016–17 में 48% तक गिर गई है। उसके बाद का डेटा FCI ने जारी नहीं किया है।

2020–21 में FCI को सरकार ने 77982 करोड सब्सिडी के लिए आवंटित किया गया है जबकि उसे एमएसपी पर किसानो से अनाज खरीद कर पीडीएस के तहत अनाज देने के लिए 2 लाख 14 हजार 582 करोड़ रुपए की और ज़रूरत है जिसके लिए फिर FCI को NSSF से ऋण लेना होगा। अगले बित वर्ष तक FCI पर NSSF का ऋण 3 लाख 22 हजार 800 करोड़ पहुंच जायेगा वो भी तब जब सरकार बजट की पूरी राशि आवंटित कर दे।

नए आध्यादेश में मण्डी के साथ साथ अब कोई भी व्यापारी ओपन मार्केट में अनाज खरीद सकता है। कहा जा रहा की किसानों को अब जायदा फायदा होगा लेकिन साहब ने मण्डी के बाहर एमएसपी की बाध्यता नहीं लगाई है। पूरे खेल का सार यहीं पर निकल आता है कि सरकार अब मण्डी में एमएसपी पर किसानों के अनाज खरीदने से कन्नी काट रही है जबकि दूसरी तरफ स्टॉक लिमिट में छूट और कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग जैसे नियम बनाकर पूरा कृषि बाजार कॉरपोरेट के हवाले कर अपना पिण्ड छुड़ाना चाहती है।
ये सरकारी संपतियों के निजीकरण की तरह कृषि का निजीकरण है ।

आसिफ मलिक।।

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