◾प्रेमी संग मिलकर की थी परिवार के सात सदस्यों की हत्या ।
◾प्रेम विवाह करने को लेकर की थी परिवार की हत्या, पवन जल्लाद ने फांसी घर का लिया जायजा
◾बावन खेड़ी हत्याकांड में शबनम और सलीम की याचिका खारिज , राष्ट्रपति के यहां से खारिज हुई दया याचिका ।
आज़ाद भारत में पहली बार किसी महिला को दी जाएगी फांसी । मथुरा जेल में सन 1870 में पहली बार किसी महिला को फांसी पर लटकाया गया था । मगर आज़ादी के 73 साल बाद पहली बार किसी महिला को फांसी होने का रास्ता साफ हो गया है। मेरठ के जल्लाद पवन मथुरा जेल में आकर फांसी घर का निरीक्षण कर चुके हैं फांसी के लिए रस्सा बनाने का ऑर्डर दे दिया गया है बनाने की इसके अलावा शबनम के वज़न के पुतले को कई बार फांसी घर में लटका कर परीक्षण कर लिया गया है ।
उल्लेखनीय है। कि 14 अप्रैल सन 2008 की रात अमरोहा के हसनपुर कोतवाली क्षेत्र के बावन खेड़ी गांव में अपने प्यार में पागल शबनम ने अपने आशिक सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के साथ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था जिसमें मासूम भतीजे को भी नहीं छोड़ा था शबनम एमए कर शिक्षामित्र बनी थी। इसी दौरान गांव के ही 8वीं कक्षा पास सलीम से इश्क कर बैठी। प्यार में वो ऐसी डूबी गई कि सलीम के अलावा कुछ नही सोचती थी । जब यह बात उसके पिता शौकत अली पता चली तो उन्होंने उसे समझाया कि यह गलत है । शबनम ने भी कहा कि उसकी सलीम से शादी करवा दे । लेकिन सलीम पठान अलग बिरादरी का था । इसलिए घर वालों ने निकाह नही कराने की बात कही । यहीं से शबनम का दिमाग ठनका और उसने अपना अलग रास्ता अख्तियार किया
14 अप्रैल, 2008 की रात को उसने परिजनों के खाने में नींद की गोलियां मिलाकर बेहोश कर दिया । इसी बीच सलीम उसके पास आया उस दिन शबनम की फुफेरी बहन राबिया भी घर आई हुई थी. रात में मौका पाकर शबनम और सलीम ने मिलकर पहले अपने पिता शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस, राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया का गला काट दिया. 10 महीने की उम्र के भतीजे अर्श का भी गला घोंटकर हत्या कर दी
उस वक्त उत्तर प्रदेश में मायावती जी की सरकार थी तत्कालीन मुख्यमंत्री खुद कोतवाली हसनपुर के बावन खेड़ी गांव में आई थी।। शबनम ने राष्ट्रपति के यहां अपनी फांसी की माफी के लिए दया याचिका दाखिल की थी जिसे राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दिया।। शबनम की फांसी इससे पहले कई बार ढल चुकी है एक बार वह गर्भवती थी इसलिए फांसी नहीं दी गई फिर बच्चे को पालने के लिए 3 साल का वक्त मांगा गया बताया जाता है कि शबनम का बेटा ताज बुलंदशहर के एक पत्रकार के यहां पल रहा है और अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा है।
शबनम-सलीम के केस में करीब 27 महीने लगे 100 तारीखों तक जिरह चली । फैसले के दिन ने 29 गवाहों के बयान सुने गए . 14 जुलाई 2010 को जज ने दोनों को मामले में दोषी करार दिया । अगले दिन 15 जुलाई 2010 को जज एस एए हुसैनी ने 29 सेकेंड में दोनों को घिनौने वारदात के बदले फांसी की सजा सुनाई।
बिजनौर एक्सप्रेस की ख़ास रिपोर्ट ।