17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में जन्मे सर सैय्यद अहमद का बिजनौर से क्या रिश्ता था

▪️मुस्लिम समुदाय के युवाओं में पढाई लिखाई के प्रति बढ़ता क्रेज़ के बाद जानें क्यों मुस्लिम युवाओं के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं सर सैय्यद अहमद

Bijnor Express की स्पेशल रिपोर्ट : 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में सर सैय्यद अहमद की पैदाइश हुई । नानामुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार मे वज़ीर थे जबकि दादा मुंसिब थे। कुछ दिन सर सैयद ने भी मुगल दरबार मे नौकरी की 1842 में भारत के आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने उन्‍हें “जवद उद दाउलाह” उपाधि से सम्‍मानित किया था।

1857 का गदर मुसलमानों पर बहुत ही विनाशकारी साबित हुआ। इस गदर में मुसलमानों का कोई हाल लेने वाला नहीं था। उस वक्त सर सैय्यद अहमद खान बिजनौर में थे। उन्होंने वहाँ पर कई अंग्रेज़ परिवारों की जाने बचाईं। मुसलमानों में इल्म की काफी कमी थी और चारों तरफ जिहालत थी इसका सर सैय्यद के दिल पर गहरा असर पड़ा और इसने उनके पूरे ख्यालात ही बदल डाले।

अंग्रेज़ों ने मुसलमानों के ऊपर जो ज़ुल्म ढहाये थे उसे देख कर उनकी आंखें नम हो गयीँ और इसी वक्त आपने फैसला कर लिया कि इस उजड़ी हुई कौम को न संभाला गया तो जल्द ही ये कौम तबाह व बर्बाद हो जायेगी।

तारीख ए सरकशे जिला बिजनौर सर सैयद अहमद खां द्वारा लिखित बिजनौर जनपद के 1857 की आजादी की पहली लडा़ई की प्रमाणिक पुस्तक हैं। इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद हाफिज मलिक एवं मैरिस डैंबो ने किया:। पुस्तक को नाम दिया बिजनौर रिबैलियन। यह पुस्तक नेट पर उपलब्ध है।

1857 क्रांति की असफलता के चलते सर सैयद का घर तबाह हो गया उनके परिवार के भी कई लोग मारे गए। इस क्रांति में मुस्लिम समाज का ढांचा टूट गया दिल्ली में हज़ारो उलेमाओं फांसी पर चढ़ा दिया गया।

अंग्रेजों ने साज़िश के तहत स्कूल की किताबों को उर्दू फ़ारसी से बदल कर अंग्रेजी में कर दी जिसके वजह से मुसलमानों ने विरोध किया और अंग्रेजी ज़ुबान में पढ़ने से इनकार कर दिया।

मुसलमान ने बच्चों को स्कूल भेजना बन्द कर दिया और यही से मुसलमान स्कूल और शिक्षा से दूर होने होते गए। बिना अंग्रेजों की जुबान के बड़े ओहदों पर नोकरी मिलना बंद हो गयी। और मुस्लिम समाज बेरोजगारी और अशिक्षा की ओर बढ़ता गया।

सर सैयद 100 साल आगे की सोचते थे मुसलमानो की आने वाली स्थिति को भांप गए थे। पूरा खानदान मुग़ल दरबार मे बड़े ओहदों पर था खुद उन्हें भी मुग़ल दरबार मे अच्छा ओहदा मिला था उसके बावजूद मुग़ल दरबार छोड़कर ब्रिटिश हुक़ूमत में नौकरी कर ली।वो जानते थे कि अंग्रेज़ सत्ता में हैं इसलिए उनके खिलाफ कुछ करने के बजाये उनसे मिल कर चलनें में फायदा है। इसलिए 1875 ई, में उन्होंने अलीगढ़ में मुसलमानों की शिक्षा के लिए एक मदरसे की स्थापना की। एक साल में 11 छात्रों ने दाखिला लिया।

ये मदरसा तरक्की करके 1877 ई. में मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियेंटल कॉलेज बना। इस कालेज में पहले साल 26 मुसलमान छात्र ग्रेजुएट हुए और गैरमुसलमानों की तादाद अलग थी। 1920 ई. में इसे अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी का दर्जा मिला। जो आज हिंदुस्तान का मशहुर शिक्षा केन्द्र है। 1878 ई. में सर सैय्यद अहमद खान को सर का खिताब मिला। ये खिताब उनके नाम का विशेष हिस्सा बन कर रह गया। अब लोग उन्हें सर सैय्यद के नाम से जानते हैं।

फतेहपुर, मैनपुरी, मुरादाबाद, बरेली, ग़ाज़ीपुर कई जगह कार्यरत रहे और बनारस के स्माल काजकोर्ट के जज पद से सेवानिवृत हुए। अंग्रेजों ने इनकी सेवा व निष्ठा को देखते हुए इन्हें ”सर” की उपाधि से विभूषित किया था। नोकरी में रहते हुए मुरादाबाद, बरेली, ग़ाज़ीपुर और अलीगढ़ में उन्होंने कई आधुनिक स्कूल, कॉलेजों और संगठनों की स्थापना की।आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी ज़ुबान के चलते उन पर अंग्रेजों के वफादार होने का इल्जाम लगा यहां तक कुफ़्र तक के फ़तवे लगे शायद उस वक़्त के मुसलमान उनकी सोच को नही समझ सके जितनी दूर की वो सोचते थे।

रिपोर्ट : बिजनौर एक्सप्रेस

Aasid Aasid

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