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जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से डरी मोदी सरकार ?

Bijnor: किसान आंदोलन से निबटने के लिये मोदी सरकार कॉरपोरेट के पक्ष में बनाये तीन विवादित कृषि विरोधी कानून वापस लेने को किसी कीमत पर तैयार नहीं है। इससे एक साल पहले मुस्लिम विरोधी माने जाने वाले सीएए कानून को भी भाजपा सरकार तमाम आंदोलन और दुनिया के कई मुल्कों में विरोध होने के बावजूद बदलने को तैयार नहीं हुयी थी।

लेकिन इसके विपरीत परिवार नियोजन के लिये दो बच्चो का कानून बनाने से मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफ़नामा दाखिल कर एक तरह से डर गयी है।

संघ परिवार का लंबे समय से ये यह प्रचार चलता आ रहा है कि अगर बढ़ती हुयी मुस्लिम आबादी को कानून बनाकर काबू नहीं किया गया तो भारत एक दिन इस्लामी राष्ट्र बन जायेगा। दिलचस्प बात यह है कि खुद भारत सराकर के सर्वे जनगणना और विभिन्न पारिवारिक जांच के आंकड़े इस दावे को झुठलाते रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से कई वर्ष पहले एक जनहित याचिका दायर कर यह मांग की गयी थी कि वह सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने को एक कानून बनाने का आदेश दे जिसमें हर परिवार में केवल दो बच्चे पैदा करने की आज़ादी दी जाये। यह याचिका सबसे बड़ी अदालत में कई सालों से विचाराधीन है।

इस पर पहले की सेकुलर यानी कांग्रेस सरकार ने तो कभी कोई सकारात्मक जवाब दिया ही नहीं। इसका कारण यह माना जाता रहा है कि कांग्रेस जैसे कथित धर्मनिर्पेक्ष दल अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों का तुष्टिकरण करते हैं,

लिहाज़ा वे अपने वोटबैंक को नाराज़ करने से बचने को इस तरह का कोई कानून बनाने से परहेज़ करेंगे। लेकिन यह हैरत मगर तसल्ली की बात है कि सत्ता में आने के बाद खुद भाजपा को भी यह सच और हकीकत समझ में आ गयी है कि चुनाव जीतने को झूठा प्रोपेगंडा कर सत्ता में आना एक बात है। लेकिन जब कानून बनाने की बात आये तो परिवार नियोजन जबरन लागू करना खुद हिंदू जनता के लिये राजनीतिक रूप से नुकसान का सौदा होगा।

यही वजह है कि मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने जवाबी हलफनामे में ऐसा कोई कानून बनाने से साफ साफ मना कर दिया है। उसका कहना है कि इस तरह का कोई काूनन बनाना न तो व्यवहारिक होगा और न ही इसकी कोई आवश्यकता है।

सरकार का कहना है कि आंकड़े बताते हैं कि भारत का वर्तमान टीएफआर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 आज खुद ही उस मैजिक फीगर तक पहंुच रहा है। जो जनसंख्या स्थिर बनाये रखने के लिये हमारा आदर्श और लक्ष्य रहा है।

सरकार का यह भी कहना है कि लोगों को अपने परिवार दो बच्चो तक सीमित रखने को कानून बनाना संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक मूल्यों के लिये घातक होगा। सरकार का कहना है कि जो टीएफआर सन 2000 की जनगणना में 3.2 था अब 2018 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में खुद ही 2.2 तक आ गया है।

सरकार मानती है कि परिवार नियोजन का विकल्प अनिवार्य नहीं स्वैच्छिक है। उसका कहना है कि लोग खुद यह बात समझने लगे हैं कि छोटा परिवार देश ही नहीं उनके अपने भी हित में है।

पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत करते हुए कहा भी था कि आज इस बात की चर्चा किये जाने की महती आवश्यकता है कि लोगों में यह जागरूकता पैदा हो कि वे जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिये अपना परिवार छोटा रखें।

मोदी का कहना था कि जो ऐसा करते हैं। वे देश के विकास में योगदान देंगे और एक तरह से यही देशभक्ति का भी एक और रूप है।

सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया कि देश के कुल 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 25 ने 2.1 या उससे भी कम का लक्ष्य हासिल कर लिया है। सरकार का कहना है कि जहां 1991 से 2001 तक के दशक में देश की आबादी 21.54 प्रतिशत बढ़ी वहीं2001 से 2010 तक के दस सालों मंे बढ़त घटकर 17.64 तक आ गयी। यह सही है कि भारत ने इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डवलपमेंट 1994 के संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर सहमति जताई है।

इसके लिये अनिवार्य नहीं ऐच्छिक परिवार नियोजन के जो तरीके अब तक सरकार ने अपनाये हैं। उनका सकारात्मक परिणाम सामने आया है। केंद्र सरकार ने यह भी स्पश्ट किया कि परिवार नियोजन का मामला मूल रूप से राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभाग के अधीन आता है।

इसमें केंद्र राज्यों को सभी जरूरी सहायता और समय समय पर सलाह व निर्देश देता ही रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पहले यह जनहित याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की थी। जहां यह खारिज कर दी गयी थी। यहां यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि इंदिरा गांधी की सरकार ने जिस तरह से आपातकाल लगाकर70 के दशक में जबरन लोगाें की नसबंदी करके अनिवार्य परिवार नियोजन का जनविरोधी और अमानवीय अभियान चलाया था।

उसका अंजाम कांग्रेस को अब तक की सबसे बुरी हार के तौर पर भुगतना पड़ा था। शायद यही वजह है कि मोदी सरकार उस सयम की इंदिरा की भूल से सबक लेकर ऐसा कोई अतिवादी कदम नहीं उठाना चाहती। जिससे मुसलमानों को दो बच्चो का कानून मनवाने के चक्कर में उल्टा गरीब और अशिक्षित या कम शिक्षित हिंदुओं के भी नाराज़ होने का ख़तरा पैदा हो जाये।

वैसे भी सर्वे और सामाजिक पारिवारिक व स्वास्थ्य जांच के आंकड़े और जनसंख्या विशेषज्ञ बताते हैं कि यह प्रमाणित हो चुका है कि परिवार नियोजन करने या ना करने का सीधा रिश्ता धर्म से ना होकर शिक्षा और सम्पन्नता से है। इसका जीता जागता उदाहरण केरल है। जहां सबसे अधिक शिक्षा का स्तर उन्नत है और सभी धर्मों के लोगों में परिवार नियोजन लगभग बराबर ही लोकप्रिय है।

यही तथ्य कश्मीर गुजरात और दक्षिण के राज्यों पर लागू होता है। वास्तव में सच यही है कि परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण के लिये सख़्त कानून या तानाशाही की नहीं शिक्षा उच्च शिक्षा वैज्ञानिक व तार्किक शिक्षा के साथ ही सबके विकास और सबको सम्पन्न बनाने की ज़रूरत है।

यहां यह भी याद रखना चाहिये कि अगर कोई सरकार या संगठन खुलकर या छिपकर चंद पंूजीपतियों के हाथ में खेल रही है और अधिकांश जनता को गरीब व जाहिल बनाये रखने की नीतियां अपना रही है। साथ ही कोई संगठन अगर एक धर्म विशेष वर्ग विशेष या दलित जैसी जाति विशेष को समाज में अलग थलग करने उनको आर्थिक रूप से लगातार कमज़ोर करने और उनको गरीब बनाये रखने की नीतियांे पर चल रहा है तो वह उनको परिवाार नियोजन से जानबूझकर दूर रखने की हरकत कर रहा है, जो सही मायने में देशविरोधी ही मानी जायेगी



स्वतंत्र पत्रकार इक़बाल हिंदुस्तानी

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