Edited By : बिजनौर एक्सप्रेस , Bijnor, UP | Updated : 16 सितंबर , 2021
मौलवी मुहम्मद बाकिर (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 ) के कार्यकर्त्ता एवं पत्रकार थे। वह 1780 ई• में दिल्ली में पैदा हुए। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से हासिल की, बाद में वह आगे की पढ़ाई के लिए ” दिल्ली कालेज ” गये।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कई नौकरियों में काम किया, जैसे कि ” दिल्ली कालेज ” में पढ़ाना और राजस्व विभाग में तहसीलदार के रूप में कार्य किया।
लेकिन नौकरी करना उनका लक्ष्य नहीं था। 1836 ई• में जब ब्रिटिश सरकार द्वारा ” प्रेस एक्ट ” में संशोधन के बाद प्रकाशन की अनुमति दी तो उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया
1837 में उन्होंने साप्ताहिक ” देहली उर्दू अखबार ” के नाम से अपना सामाचार पत्र निकालना शुरू कर दिया। यह अखबार लगभग 21 वर्षों तक जीवित रहा जो उर्दू पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ।
इस अखबार की मदद से वह सामाजिक मुद्दों के साथ साथ जनता में राजनीतिक जागरूकता लाने और विदेशी शासकों के खिलाफ एकजुट करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मौलवी बाकिर ने अपने अखबार का दिल्ली में ना सिर्फ बल्कि दिल्ली के आसपास के इलाकों में अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ जनमत तैयार करने में अखबार का भरपूर उपयोग किया।
1857 में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा फिरंगियों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया गया और मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को सभी विद्रोही नेताओं द्वारा अपना नेता चुना गया तो मौलवी बाकिर ने अपना समर्थन देने के लिए 12 जुलाई 1857 को अपने अखबार ” देहली ऊर्दू अखबार ” का नाम बदलकर ” अखबार उज़ ज़फर ” कर दिया।
4 जून 1857 को हिंदू मुस्लिम एकता का कट्टर समर्थक पत्रकार मौलवी बाकिर दोनों समुदाय से अपील करते हुए अपने अखबार में लेख छापते हैं — ” यह मौका मत गंवाओ, अगर चूक गए तो फिर कोई मदद करने नहीं आएगा, यह अच्छा मौका हैं तुम फिरंगियों से निजात पा सकते हो।
विद्रोह का असफल हो जाने पर क्रांति के महानायक मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को बंदी बना लिया गया और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया गया। इसके बाद अंग्रेज़ एक-एक भारतीय सिपाहियो को ढूंढ ढूंढकर कालापनी, फांसी और तोपों से उड़ाने का काम करने लगे।
इसी के साथ 14 सितंबर 1857 को मौलवी मुहम्मद बाकिर को भी गिरफ्तार कर लिया गया और कैप्टन हडसन के सामने पेश किया गया, उसने मौलवी बाकिर को मौत की सज़ा का फरमान सुनाया।
इसके तहत 16 सितंबर 1857 को दिल्ली गेट के सामने पत्रकार मौलवी मुहम्मद बाकिर को तोप से उड़ा दिया गया। खिराजे अक़ीदत उस महान शख्सियत को जिन्होंने खुद को तोप से उड़वा दिया मगर अंग्रेजो के जुल्म के खिलाफ लिखना नही छोड़ा था।
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