🔹कुंभ मेला स्पेशल (बिजनौर एक्सप्रेस)
रिपोर्ट इंजी० विकास कुमार आर्य
🔹सभी पर्व स्नान: मेला पुलिस की देखरेख में होंगे:- गुंज्याल आईजी
उत्तराखंड न्यूज:- हरिद्वार में 2021 में होने जा रहे कुंभ का आयोजन इस बार केवल 48 दिन का ही होगा।कोरोना महामारी के चलते उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि कुंभ का आयोजन मुख्य तौर पर मार्च से अप्रैल के बीच किया जाएगा। सरकार फरवरी अंत में मेले की विधिवत अधिसूचना जारी करेगी। कोरोना वायरस को लेकर सरकार ने इसकी तैयारी की है।
आईजी कुंभ संजय गुंज्याल ने आगामी कुंभ मेला की व्यवस्थाओं को लेकर श्री गंगा सभा के पदाधिकारियों के साथ बैठक की जिसमें सभी पदाधिकारियों के सुझाव सुनने के बाद आईजी ने कहा कि शाही स्नान के दौरान सामान्य श्रद्धालुओं को हरकी पैड़ी एवं मालवीय द्वीप घाट को छोड़कर अन्य घाटों पर स्नान कराने की व्यवस्था पूर्ववत रहेगी।
हरिद्वार कुम्भ में श्रद्धालुओं को पास के जरिए मिलेगा प्रवेश : दीपक रावत (कुंभ मेला अधिकारी)
‘‘कुम्भ मेले में संख्या सीमित रखने के लिए जरूरी है कि श्रद्धालुओं को पास के आधार पर ही इसमें प्रवेश की अनुमति दी जाए.”
विदेशी नागरिकों से वार्तालाप मे सुगमता के लिए मेला पुलिस तत्पर:- आलोक श्रीवास्तव (ट्रेनर)
करियर एंड एजुकेशन इंस्टीट्यूट की ओर से आलोक श्रीवास्तव ट्रेनिंग करा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जवानों को ड्यूटी के दौरान विदेशी नागरिकों से वातार्लाप में आने वाली परेशानियों को देखते हुए इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की शुरुआत की गई। इसमें काफी संख्या में जवानों ने भाग लेना शुरू किया है। उन्होंने पुलिसकर्मियों को इंग्लिश बोलने का महत्व बताया।
हरिद्वार कुंभ-2021 में शाही स्नान
11 मार्च, महाशिवरात्रि पर्व पर पहला शाही स्नान 12 अप्रैल, सोमवती अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान 14 अप्रैल, बैशाखी पर्व पर तीसरा शाही स्नान 27 अप्रैल, चैत्र पूर्णिमा पर चौथा शाही स्नान।
कुंभ में अन्य महत्वपूर्ण स्नान
14 जनवरी, मकर संक्रांति 11 फरवरी, मौनी अमावस्या 16 फरवरी, वसंत पंचमी 27 फरवरी, माघ पूर्णिमा 13 अप्रैल, नव संवत्सर 21 अप्रैल, रामनवमी
कुंभ से जुड़ी प्राचीन मान्यता एवं इतिहास
कुंभ के संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार महर्षि दुर्वासा के शाप की वजह से स्वर्ग श्रीहीन यानी स्वर्ग से ऐश्वर्य, धन, वैभव खत्म हो गया था। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा,
अमृत पान से सभी देवता अमर हो जाएंगे। देवताओं ने ये बात असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। इस मंथन में वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया था।
समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इन रत्नों में कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख, भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे।
जब अमृत कलश निकला तो सभी देवता और असुर उसका पान करना चाहते थे। अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध होने लगा। इस दौरान कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। ये युद्ध 12 वर्षों तक चला था, इसलिए इन चारों स्थानों पर हर 12-12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
इंजी० विकास कुमार आर्य