New Delhi: दिल्ली के वीवीआईपी क्षेत्र लोधी रोड स्थित इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बोर्ड पर दक्षिणपंथी संगठन हिंदू सेना द्वारा जिहादी आतंकवादी इस्लामिक सेंटर लिख दिया गया। इसे दिलचस्प कहें या फिर विडंबना कि जिस रोड पर इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर है उसी रोड पर दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल का ऑफिस भी है, लेकिन इसके बावजूद किसी दक्षिणपंथी संगठन के लोग इस तरह की घटना को अंजाम देकर आराम से निकल जाते हैं।
वरिष्ठ जर्नलिस्ट wasim akram Tyagi ने लिखा कि इस घटना को इस्लामोफोबिक समझने की भूल मत कीजिये बल्कि यह मुसलमानों और उनके धर्म से नफरत का खुल्लम खुल्ला प्रदर्शन है। ऐसा प्रदर्शन मौजूदा सत्ताधारी दल के अनुषांगिक संगठन एंव नेता समय समय पर करते रहे हैं। लेकिन न तो इस सरकार में और न इससे पहले की सरकारों में ऐसे लोगों को खिलाफ कोई सख्त कार्रावाई हो पाई है।
दिल्ली स्थित इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बोर्ड पर हिंदू सेना नाम के दक्षिणपंथी संगठन ने जिहादी आतंकवादी इस्लामिक सेंटर लिख दिया। यह #Islamophobia_in_india नही है बल्कि यह इस्लाम और उसके अनुयाईयो से नफरत का प्रदर्शन है।अगर इस देश की सरकारे निष्पक्ष हैं तो इन संगठनो को बैन करे। pic.twitter.com/tYVxngQ9a7
— Wasim Akram Tyagi (@WasimAkramTyagi) November 1, 2020
इस देश में जितनी तेज़ी से नफरतें बढ़ रहीं हैं उनके परिणाम बहुत ही घातक सिद्ध होने वाले हैं। कुछ महीने पहले दिल्ली के एक अन्य वीआईपी क्षेत्र में ताहिर हुसैन और अरविंद केजरीवाल के हॉर्डिंग्स लगाए गए थे, जिन पर आपत्तिजनक बातें लिखीं हुईं थीं। हॉर्डिंग्स लगाने वाले के खिलाफ क्या कार्रावाई हुई? इसका जवाब हमारे पास नहीं है।
अब इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बोर्ड पर ‘जिहादी आताकवादी इस्लामिक सेंटर’पौतने वाले हिंदू सेना पर क्या कार्रावाई होगी, या होगी भी अथवा नहीं इसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है। जो अहम सवाल है वह यह है कि क्या इन घटनाओं को आतंकी घटना कहा जा सकता है? हालांकि इन घटनाओं में किसी की जान नहीं ली गई है, कोई गोली नहीं चलाई है, बम नहीं फोड़ा गया है, फिर भी इन्हें आतंकी घटना कहा जाना चाहिए।
#Terrorists defaces #India Islamic Cultural Centre’s sign board, situated near Delhi special police cell office, on posh Lodi road, Delhi! 👇#Delhi#Islamophobia@WasimAkramTyagihttps://t.co/tEr7kBE1nn
— @Misra_Amaresh (@misra_amaresh) November 1, 2020
किसी समुदाय के प्रति नफरत फैलाकर उसे आतंकित करना भी तो आतंकवाद ही है। आज इस्लामिक कल्चरल सेंटर का निर्जीव बोर्ड निशाने पर लिया गया है, कल कोई सजीव ‘अफराजुल’ भी निशाने पर लिया जा सकता है। दक्षिणपंथी सगंठनों की करतूतें, नेताओं की बयानबाजी और ऊपर से ज़हर उगलता मीडिया पूरी तरह से मुस्लिम विरोधी हो चुकी है।
जब बल्लभगढ़ की घटना पर कई मीडिया संस्थानों द्वारा शीर्षक चलाया जाता है कि ‘आखिर कब तक हिंदुओं की धैर्य की परीक्षा होगी?’ तो इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि देश के एक वर्ग से परोक्ष रूप से यह आह्वान किया जा रहा है कि वे कानून, कोर्ट, कचहरी किये बग़ैर दूसरे वर्ग के खिलाफ हिंसा करें, उसे सबक़ सिखाएं। भले ही हाथरस जैसी घटना पर चुप्पी साध ली गई हो, और आरोपियों को बचाने के लिये पंचायतें हुईं हों, लेकिन भावनाएं तो बल्लभगढ़ की घटना में बसती हैं क्योंकि उसका अभियुक्त उस समाज से है जिसके खिलाफ नफरत फैलाकर, फोबिया दिखाकर आसानी से ध्रुवीकरण कराया जा सकता है।
नफरत का यह ज़हर धीरे-धीरे इंसान की रगों में उतरता चला जाता है, जिसके बाद वह आत्मघाती बम बन जाता है। वह मरता है, मारता है। दोनों ही सूरत में उसे घाटे में रहना है, और फायदा हमेशा तीसरे को मिलता है। सरकारें ऐसे असमाजिक तत्वों पर लगाम नहीं लगातीं बल्कि उन्हें संरक्षण देतीं हैं, ताकि रोटी, रोजगार मांगती जनता को ऐसा ही कोई मुद्दा उछालकर भ्रमित कर दिया जाए। वैसे भी समाज में फैलती नफरत को खत्म करना समाज की जिम्मेदारी है, लेकिन जब समाज ही सरकार की भाषा बोलने लगे तब स्थिती चिंताजनक हो जाती है। तब समाज से ऐसी उम्मीद करना भी बेमानी है कि वह ‘हिंदू सेना’ की करतूत पर ऐसे असमाजिक तत्वों का बहिष्कार करेगा?
Wasim Akram Tyagi✍✍