मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित हबीबगंज का नाम भोपाल के नवाब हबीब मियां के नाम पर रखा गया था पहले इसका नाम शाहपुर था, साल 1979 में रेलवे विभाग ने इसका विस्तार करते हुए इसका नाम बदलकर हबीबगंज रेलवे स्टेशन कर दिया था,
दरअसल भोपाल के नवाब हबीब मियां ने 1979 में इस स्टेशन के विस्तार के लिए अपनी कीमती जमीन दान में दी थी, जिसके बाद रेलवे विभाग ने इसका नाम बदलकर हबीबगंज रख दिया था,
आप को बता दे कि ISO प्रमाण पत्र हासिल करने वाले इस वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन के आसपास की सुंदरता और हरियाली झीलों का चलते इसकी सुंदरता दोगुनी हो जाती हैं,
रानी कमलापति कौन थीं जिनकी याद में बदला हबीबगंज स्टेशन का नाम और छिड़ी बहस…?
रानी कमलापति एक गोंड रानी थीं जिनका विवाह गिन्नौरगढ़ के राजा के साथ हुआ था. उन्हें गोंड राजवंश की अंतिम रानी माना जाता है. भोपाल में कमला पार्क उन्हीं के नाम पर बना है और उसी में उनका एक महल भी मौजूद है. रानी कमलापति के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ख़ूबसूरत थीं.
इतिहासकारों की बात मानें तो भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर दूर गिन्नौर गढ़ था जहां के राजा निज़ाम शाह थे. उस वक़्त भोपाल भी निज़ाम शाह के क़ब्ज़े में था.
निज़ाम शाह एक गोंड राजा थे जिनकी सात बीवियां थीं. निज़ाम शाह की सात बीवियों में से एक बीवी का नाम कमलापति था. लेकिन निज़ाम शाह का भतीजा आलम शाह अपने चाचा की संपत्ति हड़पना चाहता था और कमलापति को अपना बनाना चाहता था.
आलम शाह ने रानी कमलापति को पाने के लिए एक दिन अपने चाचा निज़ाम शाह के खाने में ज़हर मिला दिया जिससे निज़ाम शाह का निधन हो गया.निज़ाम शाह की मौत के बाद आलम शाह ने राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया. निज़ाम शाह की मौत के बाद रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ भोपाल के रानी कमलापति महल में रहने लगीं.
लेकिन रानी कमलापति के दिमाग़ में अपने पति की हत्या का बदला लेना चल रहा था. ऐसे में रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद ख़ान से मदद मांगी. मोहम्मद ख़ान उस वक़्त अब के इस्लामपुर में शासन कर रहे थे.
भले अब अंधभक्तों की सरकार इसका नाम बदलकर कमलापती स्टेशन करने जा रही हो लेकिन हबीब मियां की दी हुई ज़मीन के दस्तावेजों में से उनका नाम कैसे हटाएंगे…
रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद ख़ान से अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए कहा और उसके बदले में एक लाख अशर्फ़ियां देने का वादा किया. दोस्त मोहम्मद ख़ान ने आलम शाह की हत्या कर दी.इसके बाद रानी दोस्त मोहम्मद ख़ान को सिर्फ़ 50 हज़ार अशर्फ़ियाँ दे पाई थीं और बाक़ी बचे पैसों के बदले उन्होंने भोपाल का हिस्सा दे दिया.
इतिहासकार शंभू दयाल गुरु ने BBC से बात करते हुए बताया कि, “जबतक रानी कमलापति जिंदा रहीं तब तक दोस्त मोहम्मद ख़ान ने कभी भी उन पर हमला नहीं किया. उन्होंने भोपाल पर क़ब्ज़ा उनकी मौत के बाद ही किया.उन्होंने बताया कि दोस्त मोहम्मद ख़ान के साथ उनके संबंध अच्छे रहे.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी एक ब्लॉग लिखा है. उन्होंने इसमें लिखा है – ” दोस्त मोहम्मद संपूर्ण भोपाल की रियासत पर क़ब्ज़ा करना चाहते थे. उन्होंने रानी कमलापति को अपने हरम में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा. दोस्त मोहम्मद ख़ान के इस नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लाल घाटी में युद्ध करने चला गया. घमासान युद्ध हुआ, जिसमें नवल शाह की दुखद मृत्यु हो गई.
“इस स्थान पर इतना खून बहा कि ज़मीन लाल हो गई. इसी कारण इसे लाल घाटी कहा जाने लगा. इस युद्ध में रानी कमलापति के दो लड़ाके बच गए थे, जो जान बचाते हुए मनुआभान की पहाड़ी पर पहुँचे और काला धुआं कर संकेत किया कि ‘हम युद्ध हार गए हैं. रानी कमलापति ने विषम परिस्थिति देखते हुए बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया, जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर छोटे तालाब में आने लगा. इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली.
“दोस्त मोहम्मद ख़ान जब तक क़िले तक पहुंचा, तब तक सबकुछ ख़त्म हो गया था. रानी कमलापति ने जीते जी भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया. स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवन-लीला ख़त्म की थी. उनकी मृत्यु के बाद भोपाल में नवाबों का क़ब्ज़ा हुआ. नारी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए रानी कमलापति ने जल-समाधि लेकर इतिहास में अमिट स्थान बनाया है.”
*दावे पर सवाल*
लेकिन हिस्ट्रीटेलर और भोपाल में हेरिटेज़ वॉक आयोजन करने वाले सिकंदर मलिक का कहना है कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि दोस्त मोहम्मद ख़ान की वजह से रानी कमलापति ने अपना जीवन समाप्त किया.
उन्होंने कहा, “जिस छोटे तालाब के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने अपना जीवन उस तालाब में समाप्त किया वो उस वक़्त मौजूद ही नहीं था.”
वहीं एक अन्य इतिहासकार रिज़वान अंसारी भी सिकंदर मलिक से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं कि उस वक़्त छोटा तालाब था ही नहीं.रिज़वान अंसारी का कहना है कि रानी कमलापति, दोस्त मोहम्मद ख़ान को अपना भाई मानती थीं.
उन्होंने बताया, “दोस्त मोहम्मद ख़ान ने भी रानी कमलापति को बहन मानते हुए उनकी मदद की थी और उनके भतीजे से उन्हें बचाया था.”
उन्होंने कहा, “इसके बदले में रानी कमलापति ने न सिर्फ़ पैसे दिये बल्कि भोपाल का एक बड़ा हिस्सा भी उन्हें दिया. रानी कमलापति उसके बाद उनकी हिफ़ाज़त में रहीं. रानी कमलापति की मौत के बाद दोस्त मोहम्मद ख़ान ने फिर भोपाल को अपने क़ब्ज़े में लिया.”
वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता और प्रदेश सचिव रजनीश अग्रवाल ने भोपाल के हबीबगंज स्टेशन के नाम को बदलने जाने पर कहा कि रानी कमलापति इतिहास का गौरव हैं.
उन्होंने कहा, “यह महज़ एक बोर्ड का हटना और दूसरे का लगना नहीं है. यह इतिहास के गौरव को पुनःस्थापित करने का,एक सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख है.”
लेकिन एक स्टेशन के नाम बदल जाने की वजह से रानी कमलापति और उनके परिवार को लेकर कई तरह की कहानियां सामने आ गई हैं जिसे लोगों को मानना है कि राजनैतिक दल अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे है.
©Bijnor express
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