▪️फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैकों पर व्यक्तिगत हमला अस्वीकार्य: विदेश मंत्रालय
▪️फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का जमीयत हिंद ने किया समर्थन
तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों द्वारा फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमानुअल मैकों पर कथित इस्लामोफोबिया फैलाने के आरोपों पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रवक्ता ने कहा,
हम अंतरराष्ट्रीय विमर्श के बुनियादी मानकों का उल्लंघन करते हुए राष्ट्रपति मैकों पर अस्वीकार्य भाषा में व्यक्तिगत हमलों का पुरजोर विरोध करते हैं मंत्रालय ने कहा, हम उस आतंकी हमले की भी निंदा करते हैं, जिसमें फ्रांसीसी शिक्षक को मार दिया गया। इससे दुनिया स्तब्ध है। किसी भी कारण से और किसी भी परिस्थिति में आतंक को सही नहीं ठहराया जा सकता
भारत में तैनात फ्रांस के राजदूत ने आॅफिशल ट्विटर हैंडल पर ट्विट करते हुए भारत का आभार व्यक्त किया है,
Thank you @MEAIndia. France and India can always count on each other in the fight against terrorism.https://t.co/oXZ0XpKNSZ pic.twitter.com/iGylUYxUB6
— Emmanuel Lenain 🇫🇷🇪🇺 (@FranceinIndia) October 28, 2020
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने खाड़ी देशों के मुसलमानों द्वारा फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का समर्थन किया है। खाड़ी देशों ने फ्रांस के कथित इस्लामोफोबिया से जुडे़ विवाद के चलते यह आह्वान किया है।
जमीयत के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने पैगंबर साहब का अपमान करने वाले कार्टून का समर्थन करने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमानुअल मैकों की निंदा की। उन्होंने कहा, हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन के हर माध्यम का समर्थन करते हैं। मदनी ने कहा, मुस्लिमों को संयम दिखाना चाहिए और इस्लाम का सही संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहिए।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रॉन ने भी अपने आॅफिशल ट्विटर हैंडल पर अरबी में ट्वीट करतें हुए अपने बयान पर सफाई दी है, 👇
لا شيئ يجعلنا نتراجع، أبداً.
— Emmanuel Macron (@EmmanuelMacron) October 25, 2020
نحترم كل أوجه الاختلاف بروح السلام. لا نقبل أبداً خطاب الحقد وندافع عن النقاش العقلاني. سنقف دوماً إلى جانب كرامة الإنسان والقيم العالمية.
फ्रांस लगातार सुर्खियो मे छाया हुआ है। कारण फिर से इस्लाम है। फ्रांस में इस्लामोफोबिया बहुत तेज़ी से बढा है, फ्रांस में तक़रीबन दस प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। फ्रांसीसियो पर इस्लामोफोबिया इस कदर हावी है कि इसी साल दो अक्टूबर को राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने एक भाषण में ‘इस्लामिक कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ युद्ध’ के तौर पर एक क़ानून का प्रस्ताव रखा था, अगर क़ानून पास हो गया तो विदेश के इमाम फ़्रांस की मस्जिदों में इमामत नहीं कर सकेंगे, और छोटे बच्चों को घरों में इस्लामी शिक्षा नहीं दी जा सकेगी। दिलचस्प यह है कि फ्रांस ‘धर्मनिर्पेक्ष’ राष्ट्र है, और अभिव्यक्ति का पक्षधर रहा है। लेकिन इस्लामी शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने का मसौदा तैयार करना फ्रांस द्वारा स्थापित ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ पर सवालिया निशान लगाता है?
अब ज़रा फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा लाए गए इस्लामी शिक्षा को प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव की तिथी पर ग़ौर कीजिए, यह प्रस्ताव दो अक्टूबर को लाया गया, ज़ाहिर है यह प्रस्ताव फ्रांस के सेक्यूलर चरित्र के ख़िलाफ था, जिसका पारित होना भी संदिग्ध लग रहा था। लेकिन चार दिन पहले पेरिस में घटी घटना ने इस प्रस्ताव के समर्थन में हवा का रुख कर दिया है।
पेरिस में एक 18 वर्षीय युवा ने उस स्कूल टीचर की गला रेतकर हत्या कर दी थी, जिस पर पैगंबर ए इस्लाम के कार्टून को अभिव्यक्ति की आज़ादी के तौर पर दिखाए जाने का आरोप था। जवाबी कार्रावाई में हत्यारोपी को भी पुलिस ने मार गिराया। इसके बाद से फ्रांस मे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं, पेरिस समेत फ्रांस के कई बड़े शहरों में विवादित पत्रिका शार्ली एब्डो के उन कर्मचारियों के भी फोटो लगाए हैं, जो साल 2015 में कथित तौर से आईएसआईएस के हमले में मारे गए थे। शार्ली एब्डो ने पैग़ंबर ए इस्लाम पर कार्टून बनाकर उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी बताया था।
अब स्थिती यह है कि फ्रांस के दो शहरों में शार्ली एब्दो के पैगंबर मोहम्मद साहब के विवादित कार्टून दीवारों पर दिखाए जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि ऐसा दिवंगत टीचर को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जा रहा है, और इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी नाम दिया गया है। सवाल यहीं से पैदा होता है कि विश्व की सवा अरब से भी अधिक आबादी की आस्था का अपमान करना अभिव्यक्ति की आज़ादी कैसे हो सकता है? दरअस्ल यह कृत्य बहुसंख्यकवाद एंव दक्षिणपंथ से प्रेरित है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर इस्लाम के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले फ्रांसीसी पहले यह तो तय करें कि वे इस्लाम के खिलाफ हैं या आतंकवाद के? क्योंकि फ्रांसीसियों ने अपने प्रदर्शन को इस्लाम विरोधी बना दिया है, यह भी आतंकवाद ही है, इसे बौद्धिक आतंकवाद कहा जाता है। लेकिन यह सवाल कोई नहीं उठाएगा, मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग, दक्षिणपंथी, वामपंथी यहां तक कि तथाकथित सेक्यूलर भी इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाम देकर नज़रअंदाज़ कर देंगे।
Report by bijnor Express