विलुप्त होने के कगार पर हैं बिजनौर की ऐतिहासिक तांगा दौड़,

सदियों से चली आ रही ऐतिहासिक तांगा दौड़ विलुप्त हो चुकी है आज अपने पुराने दिनों को याद कर मन कुंठित हो जाता है जब बैल गाड़िया एक जमाने में आवागमन का सर्र्वसुलभ साधन होती थी खेती के अतिरिक्त भी बैलगाड़ियों का उपयोग होता था तथा घरों में बैलगाड़ियां रखना प्रतिष्ठा का विषय समझा जाता था।

आप को याद है बैलगाडी का वह दौर जब गाँव के आस पास चारागाह होती थी जानवरों को लोग वहीं चराया करते थे व तालाबों व गड्डों में पानी पिलाया व नहलाया करते थे बढ़ती आबादी के कारण जो परिवार कम जोत के मालिक थे वे धीरे धीरे भूमिहीन हो गये फिर सरकारों नें सारे चरागाह भूमिहीनों को निवास व खेती को लिए आवंटित कर दिये गये

सरकारों नें वोट के लालच में जानवरों की चरागाहों की जमीन भी आबंटित कर दी जानबरों के लिए कोई जगह ही नहीं रखी समाप्त होते चरागाहों व बढते ट्रेक्टर के चलन नें मेहनती पशुओं की जरूरत को ही समाप्त कर दिया केवल दुधारू पशु ही लोगों की आवश्यकता रह गये इसलिए गाय व भैस के नर बच्चे गायब होते दिख रहे हैं

एक वह भी दौर था जब बैल किसान की शान हुआ करते थे तब कोई किसान गाय भैसों के बछडों को कसाई को नहीं बेचता था किसान बड़े जतन से उन्हें पालते थे किसी गाय के जब बछड़ा पैदा होता था तब किसान बडा खुश होता था वह सोचता था कि कुछ दिन बाद जब बछडा बड़ा हो कर खेती बाडी में उसकी मदद करे गा

खेती का सारा काम तब बैलों से ही किया जाता था किसान सुबह सूर्य निकलनें से एक दो घंटे पहले ही अपनें बैलों को खेतों में ले जा कर जुताई गहाई बिधाई आदि सीजनल काम शुरू कर दिया करते थे दोपहर में जब किसान खुद खाना खाते थे तब बैलों को भी आराम करनें व चारा खानें के लिए छोड़ दिया जाता था

जिस किसान के पास कितनी सुन्दर व मजबूत कद काठी के बैलों की जोड़ी होती थी वह ग्रामीणों में चर्चा का बिषय होता था बैलों की शानदार जोड़ी रखनें वाले किसान को लोग बड़े सम्मान की नजर से देखते थे शानदार बैलों की जोडी किसान की हैसियत बयान करती थी

वह दौर जब ब्लाक स्तर पर बैल ताँगो कि रेस प्रतियोगिता होती थीं जिसमें बैलों की प्रतियोगिता होती थी अच्छी जोडी रखनें वाले किसान बैलों को खूब सजा सवाँर कर प्रतिस्पर्धाओं में ले जाते थे जो जोडी दौड आदि प्रतियोगिताओं को जीतती थी उसके मालिक को बहुत इनाम व सम्मान मिला करता था

उस समय गाँवों की शादियो मे बारातें बैलगाड़ियों से जाया आया करती थीं बारात में जानें से पहले बैलों को नहलाया धुलाया जाता बैल गाडियों की मरम्मत करायी जाती उनके पहियों के चक्कों में तेल डाला जाता था ताकि पहिये सुगमता से चलते रहें बैलों के पैरों में घुँघरू गलों में काँच के बनें बड़े बड़े मोतियों की घंटियाँ भी बाँधी जाती थी बैलों के सींघों की सुन्दरता बढानें के लिए तेल में कालिख मिला कर पोता जाता था लाल पीले रंग बिरंगे दुपट्टे को बैलों के सींघो पर बाँधा जाता था बैलगाड़ियों के अंदर धान की पुराल बिछा कर चादरे बिछायी जाती थी तब बैलों के गलों में घंटियाँ व घुँघरू बडी़ मोहक ध्वनि उत्पन्न करते थे

अब न चरागाह बचे हैं न ही बैलो के लिए कुछ काम इसी कारण बैलो बछडों की दुर्दशा है बैलगाड़ियों की सवारी का जमाना अतीत की गर्त में समा चुका है
कहीं कभी कोई बैलगाड़ी दिख भी जाती है तो वह पहले का अहसास नहीं कराती क्यों कि अब कमजोर से बैल पहले वह दोनों तरोताजा रहा करते थे

आजकल बैल की जगह स्वीफ्ट डिजायर जैसी गाड़ियों ने ले ली है किसानों के दरवाजे की शोभा अब गायब हो चुकी है खेती आजकल ट्रैक्टर से होनें लगी है वह दौर अब खत्म हो चुका जब गांवों के दरवाजों पर बंधे अच्छे नस्ल के गाय बैल और उसका छरहरा शरीर बड़े किसानों की पहचान होती थी।

प्रस्तुति———-तैय्यब अली

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