गेहूं की फसल के साथ उगने वाले बथुए का बिजनौर कनेक्शन जिसे जानकर आप रह जायेंगे हैरान

Bijnor Historical information कितना जानते हैं बिजनौर को आप ?
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इन दिनों दिनों बिजनौर के बाज़ारो में खूब बथुए का साग आ रहा है आइए जानते हैं बथुए और बिजनौर का क्या है कनेक्शन

जाट लैंड बिजनौर में बथुए का पराठा ग़ज़ब बनता है खूब खाया जाता है इन सर्दियों में अगर आपने भी अभी तक नहीं खाएं हैं बथुए के पराठे तो देर किस बात की?

आपने महाभारत सीरियल तो जरुर देखा होगा तो फिर आपको कृष्ण विदुर का वह सीन भी याद होगा जिसमें श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के छप्पन भोग ठुकराकर जनपद बिजनौर मे महात्मा विदुर के घर बथुए का साग खाया था विदुर जी का मंदिर बिजनौर जिले के गजँ में स्थित है

विदुर कुटी में खड़े बथुए के पेड़ उस स्मृति को जीवंत कर रहे है
अनोखी बात यह भी है कि विदुर कुटी मे साल के बारह महीने बथुआ उगता है तभी तो बिजनौर जिले में आज भी बथुआ बहुत अधिक पैदा होता है और यहां के लोग इसे बड़े ही चाव से खाते हैं

बथुआ भारत के इतिहास में काफी महत्व रखता है इसके प्राचीन मौसमी हरे रंग को ध्यान में रखते हुए बथुए को अन्य साग की तरह भी तैयार किया जा सकता है। इसके समृद्ध स्वाद और स्वास्थ्य गुणों को देखते हुए व्यापक रूप से इसका सेवन किया जाता है बथुए के साग को बिजनौर के ग्रामीण क्षेत्रो मे सबसे ज्यादा पसंद किया जाता था

आजकल बथुआ गेहूं में पाये जाने वाला एक तरह का खर पतवार है। बथुए की प्रजाति का वर्णन हिमालय में मिलता है कह सकते हैं कि बथुआ बिजनौर मे महाभारत काल से पैदा होता आ रहा है। हिमालय की जद मे कई जगह बथुए की खेती भी होती है बथुए का जन्मस्थल शायद हिमालय में होने का अनुमान है,

बथुए के बीज चालीस साल तक ज़िंदा रह सकते हैं।
आयुर्वैदिक साहित्य में बथुवे का आयुवैदिक उपयोग का उल्लेख है प्राचीन काल मे बथुए का वर्णन दवाओ मे भी होता था समरंगना सूत्रधार में बथुए का उपयोग मकान पोतने हेतु उल्लेख है प्राचीन काल में बथुए के बीजों को अन्य अनाजों के साथ मिलाकर आटा बनाया जाता था बथुए का उपयोग पेट दर्द गठिया पेचिस जले आदि में औषधि में उपयोग होता रहा है

इस दौर मे फसलों के साथ बथुए के पौधे कीटनाशक का कार्य भी करते हैं कई कीड़े गेहूं को छोड़ बथुए पर लग जाते हैं और गेंहूं कीड़ों की मार से बच जाते हैं।

पुराने जमाने में बथुआ सब्जी बनाने आटा बनाने हेतु प्रयोग होता था अपितु मसाला मिश्रण का एक अंग भी होता था

आखिर ग्रामीण परिवेश तो ग्रामीण परिवेश ही होता है शुद्ध खानपान शुद्ध हवा सीधे साधे लोग चमक दमक शोरगुल से दूर शांत और सौम्य वातावरण आज गाँव मे बथुए के पराठो संग साग का आनंद लूटा

Historical information by tayyab Ali प्रस्तुति——तैय्यब अली

Tayyab Ali
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