उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के शहर नजीबाबाद में स्थित नवाब नजीबूदौला का वो किला जिसे लोग डाॅकू सुल्ताना का किला भी कहते हैं आखिर क्यों कहते हैं इसे डाॅकू सुल्ताना का किला जाने पूरी रिपोर्ट में,
यह किला सुल्ताना डाकू के स्वर्ण इतिहास का सच है अंग्रेजों, सेठों और सामंतों ने उसे डाकू कहा जनता के लिए तो वह गरीबों का प्यारा सुलतान था सुल्ताना नाम तो उसे हिकारत से देखने वालों ने उसे दिया सुल्ताना पर शोध करने वाले सीमैप के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. एनसी शाह ने उसे मजबूत इरादे और उच्च चरित्र का इंसान कहा है,
सुल्ताना डाकू का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जनपद के सटे गाँव हरथला में हुआ था वह जाति का #भातू था भातू एक #खानाबदोश जाति है, सुल्ताना का ननिहाल काँठ में था किंतु अंग्रेजों ने भातुओं को काठ से नवादा में बसा दिया था सुल्ताना के नाना नवादा में आ बसे और उसका का बचपन नवादा में गुजरा जीते-जी किंवदंती बन गया था सुल्ताना कहा जाता है कि वह अमीरों को लूटता था और गरीबों में बाँटता था यह समाजवाद का उसका ब्रांड था सभी जानते हैं कि वह हत्यारा नहीं था उसने कहा भी है कि उसने कभी किसी की हत्या नहीं की बावजूद इसके उसे एक मुखिया की हत्या के जुर्म में फाँसी हुई 14 दिसंबर, 1923 को #नजीबाबाद के जंगल में सुल्ताना को गिरफ्तार किया गया था,
डाॅकू सुल्ताना की गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश सरकार ने फ्रेड्रिक यंग के नेतृत्व में विशेष दल बनाया था फ्रेड्रिक यंग इंग्लैण्ड के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में से एक थे। उस विशेष दल में प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट भी शामिल थे। जिम कार्बेट आयरिश मूल के भारतीय लेखक एवं दार्शनिक थे। वे नैनीताल के पास कालाढूंगी में रहते थें वे आजीवन अविवाहित रहे और उनकी बहन भी अविवाहित थीं जिम कार्बेट ने अपनी पुस्तक ”माई इंडिया’’ में ”सुल्ताना : इंडियन रॉबिनहुड’’ नाम के अध्याय में उसकी जमकर प्रशंसा की हैं इससे सुल्ताना के व्यक्तित्व को समझा जा सकता है क्या यह महत्वपूर्ण नहीं कि सुल्ताना की गिरफ्तारी में मदद करने वाले जिम कार्बेट ने उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की?
इतना ही नहीं, जिस पुलिस पदाधिकारी फ्रेड्रिक यंग ने उसकी गिरफ्तारी की थी, उसी ने सुल्ताना के पुत्र और पत्नी को पुराने भोपाल में बेलवाड़ी के पास बसाया, बेटे को अपना नाम दिया और लंदन में पढ़ाकर आईसीएस अधिकारी बनाया। डॉ. एन. सी. शाह ने लिखा है कि जंगलों में सुल्ताना ने दो बार यंग और जिम कार्बेट की जिंदगी बख्शी थी। इससे डाकू सुल्ताना का उज्ज्वल चरित्र उजागर होता है। 1923 में फ्रेड्रिक यंग ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार तक ताबड़तोड़ 14 छापे मारे थे।
आखिरकार 14 दिसंबर, 1923 को सुल्ताना अपने खास साथी पीतांबर, नरसिंह, बलदेवा और भूरे के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। सुल्ताना पर नैनीताल की अदालत में मुकदमा चला। वह मुकदमा ”नैनीताल गन केस’’ के नाम से जाना जाता है। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुल्ताना को आगरा के जेल में फाँसी दे दी गई। सुल्ताना डाकू के जीवन और कार्यों को काव्य-नाटक में बांधने का श्रेय नथाराम शर्मा गौड़ और अकील पेंटर को है। नथाराम शर्मा गौड़ हाथरस के रहने वाले थे और उनकी पुस्तक का नाम है ‘सुल्ताना डाकू उर्फ गरीबों का प्यारा।’ अकील पेंटर ग्राम चांदन (लखनऊ) के थे और उनकी पुस्तक का नाम है ‘शेर-ए-बिजनौर: सुल्ताना डाकू।’ उत्तर प्रदेश और बिहार के कस्बों, मुफस्सल और गाँवों में शायद ही कोई ऐसा नाटक हो, जिसे इतनी लोकप्रियता मिली हो जितनी सुल्ताना डाकू के नाटकों को मिली।
लगभग चार सौ साल पूर्ब यह किला बनवाया था नजीबाबाद के नवाब नाजीबुद्दोला ने बनवाया था। बाद में इस पर सुलताना डाकू जो इसी जगह का था, कब्जा कर लिया। आज लोग इसे सुलताना डाकू का किला कहते हैसुल्ताना एक बहादुर डाकू था जिसे पकड़ना नामुमकिन था। उस समय की पुलिस ने उसे पकड़ने की लगातार प्रयास किए। सुल्ताना डाकू का अपना एक इतिहास है, सुलताना डाकू पर एक फिल्म भी बनाई गई जिसमें दारा सिहं ने सुलताना का किरदार निभाया था।सुल्ताना डाकू ने यह किला अपने छुपने की जगह के तोर पे इस्तेमाल किया। सुल्ताना अपने समय का माना हुआ डाकू था जोकि 1920 के आस पास उत्तर प्रदेश में मिलने वाले भात्तू कबीले से था
साथी रिपोर्टर तैय्यब अली भाई
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