Bijnor: मिट्टी से जुड़े बिजनौरी चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो जाये जब मौका मिलता है तो बिजनौरी लकड़ी के चूल्हे पर खानसामा द्बारा देग मे घुटे हुए उड़द चावल खाना नहीं भूलते तो आइये कभी बिजनौर उड़द चावल का स्वाद लीजिये
जनपद बिजनौर का गौरवशाली इतिहास रहा है जहां मेहमानों की आवभगत में पकवानों व उड़द चावल के इंतजामात में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती खाने के शौकीन लोग बिजनौर पहुँचते ही
यहां के फेमस उड़द चावल का लुत्फ उठाने का मौका नहीं छोड़ते हैं
बिजनौर का खान-पान बाकी राज्यों से काफी अलग है यहां का अधिकांश हिस्सा जंगल से जुड़ा होने के कारण यहां के खाने-पीने में भी आदि संस्कृति की छाप दिखती है यहां के व्यंजनों में चने का साग बगड़ कि रोटी और उड़द चावल का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है
यहा की शादी हो या महमान नवाजी तो जब यहाँ के लाजवाब खाने की बात आती है तो यहां का उड़द चावल व्यंजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं एक दौर वह भी देखा है जब मिट्टी की ढोबरी मे जमीन पर बैठ कर उड़द चावल परोसे जाते थे शायद अब भी कही लोगों को शादी में ऐसे खाना खिलाया जाता हो बिजनौर की शादियों में लाइन में बैठ के खाना खाने का आनंद ही कुछ और था
कहते हैं वक्त के साथ खुद को बदलने में ही समझदारी है मगर जमाने के साथ कई चीजें यूं ही नहीं चली आ रही हैं जमीन पर बैठकर खाने की भारतीय परंपरा को ही ले लीजिए, जो अब धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर है
मिस्टर खानसामा लकड़ी की डोई से देग मे पक रहे उड़द को खूब घोटते थे बाद मे बाराती घराती
जमीन बैठकर खाते जाते थे अब यह नजारा गुरुद्वारे के लंगर तक ही सीमित रह गया है
नोट : केवल बिजनौरी ही उड़द चावल देग ढोबरी पलौथी मार कर बैठ कर उड़द चावल के स्वाद का दर्द समझ सकते हैं बाक़ी सब तो सिंर्फ सहानुभूति ही प्रदर्शित कर सकते हैं
©Bijnor express
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