दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली किंतु बिजनौर शहर वहीं का वहीं रहा। 164 साल में इसकी आबादी दस गुना ही बढ़ी।1847 में बिजनौर शहर की आबादी 9280 थी । सन् 2011 में यह बढकर 93392 ही हुई। जबकि मेरठ की आबादी सौ साल में एक हजार गुना बढ़ी।
1847 में पहली बार जनगणना हुई। जिला गजेटियर के अनुसार इस समय बिजनौर की आबादी 9280 थी। बिजनौर जिला मुख्यालय 1824 में बना। इसी समय सरकारी कार्यालय यहां काम करने लगे थे। कर्मचारी अधिकारी भी आ चुके थे।जिला बनने के 23 साल बाद बिजनौर शहर कर आबादी 9280 थी। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि जिला बनने से पहले इसकी आबादी क्या रही होगीॽजबकि 1847 में नगीना ,शेरकोट और चांदपुर की आबादी बिजनौर से ज्यादा थी। नगीना की आबादी 11001,चांदपुर 11491 और शेरकोट की 11245 थी। 1886 के जिला गजेटियर में नजीबाबाद की आबादी नही दी । यह भी बिजनौर से ज्यादा होनी चाहिए। 1853 में दुबारा हुई जनगणना में नजीबाबाद की आबादी 19999 थी।
1853 में बिजनौर शहर की आबादी बढकर 11754 हो गई।1865 में 12566, 1872 में 12862,1881 में 15147,1891 में 16226 और 1901 में 17583 हुई। जिला गजेटियर कहता है कि कुल 17583 में 8380 महिलांए थी। जिला गजेटियर 1908 कहता है कि बिजनौर में मंदिर और मश्जिद कई हैं किंतु पुरातत्व महत्व की कोई नहीं है।शहर में बहुत कुंए है किंतु इनमें से चार चाहशीरी,खाम,पत्थर वाला और हज्जन वाला लगभग 300 साल पुराने हैं।
जिला गजेटियर कहता है कि अकबर काल में बिजनौर को महाल का दर्जा मिला। लेकिन इसका कोई महत्व नहीं था। बिजनौर से ज्यादा पास का गांव बुखारा प्रसिद्ध था।गजेटियर कहता है कि यहां चाकू ,कटलरी का सामान और ब्राह्मणों और ठाकुरों के गले में पहनने के जनेऊ बनते थे। यहां के बने जनेऊ और चाकू प्रसिद्ध रहे हैं।
बिजनौर में कचहरी और अधिकारियों के कार्यालय 1849 में बने।1877 में इनका विस्तार हुआ। जिला जेल 1850 में बनी। स्थापना के समय जिला जेल कैदी रखने की क्षमता 147 थी। 1908 के गजेटियर के अनुसार नगरपालिका1866 में बनी।उस समय नगर पालिका के 11 मुहल्ले होते थे।प्रत्येक मुहल्ले का एक सदस्य होता। जिलाधिकारी सरकारी प्रतिनिधि के रूप में पालिका के सदस्य होते थे।इस तरह पालिका के 12 सदस्य रहते।1908 में बिजनौर के मुहल्ले
चौधरियान,जाटान,खत्रियान,ब्रह्मनान,अचारजान,रांघड़ान,मिर्दगान , चाहशीरी, बाजार शंभा, काजीपाड़ा और भुल्लर गंज 11 थे। पामर गंज 1857 के डिप्टी कलेक्टर के नाम पर बना है। पामर गंज नगर का बड़ा व्यापारी केंद्र होता था। भुल्लर गंज मुहल्ला भुल्लर कलेक्टर के नाम पर रखा गया है। अब इस नाम का कोई मुहल्ला नही है।
पुराने लोग बताते है।प्रारंभ में काजीपाडा से जैन मंदिर जाने वाला मार्ग प्रमुख मार्ग होता था। मुख्य डाकघर चौराहा शाम चार बजे से सूना हो जाता था। स्वतंत्रता सैनानी स्वर्गीय आनन्द भाई बताते थे कि 1960 के आसपास बिजनौर में कई ड्रामेटिक क्लब होते थे।शाम पांच बजे के आसपास पोस्ट आफिस के चौराहे पर तख्त बिछ जाते और नाटकों का मंचन शुरू हो जाता। शाम पांच बजे के बाद शहर सूनसान हो जाता है।
सर्राफा बाजार के बाद आगे मुख्य डाकघर का चौराहा प्रमुख रहा। अब शास्त्री चौक नगर का प्रमुख चौराहा है। सन् 1984 में नगर पालिका की सीमा विस्तार का पहला प्रस्ताव भेजा गया। इसके बाद भी प्रस्ताव भेजे जा रहे, लेकिन सीमा विस्तार मंजूरी 2020 में मिल पाई।पालिका की पुरानी आबादी 93392 दर्ज है। अब 13 गांव और शामिल होने से 78363 की आबादी पालिका के दायरे में आ गई है। पुराने शहर में केवल 17 हजार मकान हुआ करते थे ।अब पंद्रह हजार और मकान पालिका क्षेत्र में शामिल हुए हैं। इससे पहले शहर का विस्तार होता रहा, लेकिन शहरीकरण को कोई ताल्लुक नहीं रहा। शहर के चारों तरफ लगने वाली ग्राम पंचायतों की जमीन में कॉलोनी बसती रही। शहर का प्रतिष्ठित स्कूल सेंट मैरीज भी चक्कर रोड पर है। यह स्कूल अब सीमा विस्तार के बाद ही पालिका के क्षेत्र में शामिल हो चुका है। पहले शहर का दायरा 3.65 किलो मीटर होता था। अब यह बढ़कर 11.70 वर्ग किलोमीटर हो गया अब चक्कर रोड तक पालिका की सीमाएं बन गईं ।
पुराने लोग बताते थे कि बिजनौर शहर में आधी आबादी सरकारी कमचारियों और अधिकारियों की है । ये सवेरे नौ बजे आफिस पहुंच जाते हैं और दिन भर के थके हारे देर शाम घर आते । खाना खाकर सौ जाते हैं। काफी आबादी ऐसी भी है जिनकी खेती आसपास के गांव में है। सिर्फ बच्चों को पढ़ाने के लिए ये बिजनौर आकर रहने लगे हैं।रोज सवेरे नाश्ता कर गांव चले जाते हैं।शाम को गांव से वापिस आते हैं। इसलिए यहां सामाजिक , साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां न के बराबर हैं। व्यापारिक केंद्र इसलिए नही बन पाया कि पास में मेरठ और मुजफ्फरनगर बड़े व्यापारिक केंद्र हैं। किसी को पांच हजार के सामान की खरीदारी करनी होती है तो वह बिजनौर की जगह मेरठ – मुजफ्फरनगर या दिल्ली से खरीद करना पसंद करता है। वहां आदमी को वैरायटी ज्यादा मिल जाती हैं, जबकि बिजनौर में ऐसा नहीं हैं।
खांडसारी का बड़ा केंद्र होने के कारण बिजनौर को पिछड़े जनपद का लाभ नही मिला। जबकि आसपास के जिले मुजफ्फरनगर ,मुरादाबाद आदि पिछड़ों में आते रहे। पिछड़े जिले में उद्योग लगने का लाभ दूसरी जगह मिलने के कारण व्यापारियों ने बिजनौर में उद्योग लगाना पसंद नहीं किया।
अशोक मधुप
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