🔹पुलिस प्रशासन की धारा 144 के जवाब में अपनी धारा 288 लागू कर पुलिस को हद में रहने की चेतावनी दी थी आखिर क्या है यह धारा 288 आइये जानते हैं
New Delhi: बात 25 अक्टूबर सन 1988 की है जब किसान मसीहा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के लाखो किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब पर रैली करने उमड़े थे
बढ़ी हुई बिजली की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर बड़ी संख्या में किसान दिल्ली आए थे उस समय वह किसान कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस को लोनी बॉर्डर पर फायरिंग भी की थी जिसमें दो किसानों की जान भी गयी थी गोली चलने के बाद आंदोलन उग्र हो गया था
उस के बाद तो जैसे क्रान्ति की ज्वाला फूट पड़ी जो कि तर्ज पर देशभर के करीब आठ लाख किसान प्रदर्शन करने दिल्ली आ गए थे इसे देखते हुए पूरे शहर में धारा 144 लगा दी गयी थी तब बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच सीमा रेखा खींचते हुए धारा 288 का ऐलान किया था तब धारा 288 लगी देख हारकर राजीव गांधी की सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा था और सारी मांगें माननी पड़ीं थी बडे बडे मंत्रीयो की हवा खराब हो गयी थी अब जान गये होंगे धारा 288 पहली बार 1988 मे क्यू भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने इस्तेमाल किया था
यह धारा 288 न तो कोई आईपीसी और न ही सीआरपीसी जैसे किसी कानून की धारा है
बल्कि धारा 288 का मतलब पुलिस की धारा 144 का जवाब है जिस तरह से धारा 144 यानी निषेधाज्ञा लगाने के बाद पुलिस एक जगह पर 5 या उससे अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा देती है कुछ वैसा ही भाकियू अपनी धारा 288 लगाकर ऐलान करती हैं उसके बाद न तो किसानों के इलाके में पुलिस आ सकती है
और न ही किसान पुलिस के इलाके में जाएंगे गाज़ीपुर बैरिकेडिंग के उस तरफ जहां पुलिस का पहरा है, तो इस तरफ किसानों ने धारा 288 लिखकर ये ऐलान कर दिया है कि कोई भी पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी या सरकारी आदमी इस तरफ न आये वरना बाबा टिकैत की धारा का उल्लंघन माना जाएगा
यहां भारतीय किसान यूनियन की धारा 288 लागू है यहां किसानों के अलावा पुलिस नेता अभिनेता सभी का प्रवेश वर्जित है
प्रस्तुति——–तैय्यब अली
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