बिजनौर निवासी आसफ़ अली ने लड़ा था शहीद भगत सिंह का केस, जानिए इस केस से जुड़ी हुई अहम जानकारियां

◾31 मार्च  1931 को दी गई थी भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव को फांसी ।

◾ आसफ़ अली ने असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर का पक्ष भी कोर्ट में रखा था

Bijnor: शहीद सरदार भगत सिंह का केस लड़ने वाले वकील आसफ अली बिजनौर के थे । भगत सिंह ने अपना केस खुद लड़ा, लेकिन केस की सभी कागजी औपचारिकताएं आसफ अली ने पूरी की वह भी बिना फीस के । बटुकेश्वर दत्त का पक्ष आसफ अली ने रखा ।

स्वतंत्रता सेनानी और भगत सिंह के वकील आसफ़ अली आज ही के दिन 2 अप्रैल 1953 को इस दुनिया से रुख़सत हुए। आसफ़ अली का ताल्लुक यूपी के बिजनौर से था। 1914 में वक़ालत की पढ़ाई खत्म करने के बाद राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल हो गए।

8 अप्रैल 1928 को अंग्रेजों के काले कानून के खिलाफ भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को दिल्ली सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। भगतसिंह के बचाव के लए आसिफ अली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुकदमा लड़ा। अफसोस की वो भगत सिंह को बचा नही सके।

1914 में, भारतीय मुस्लिम समुदाय पर ब्रिटिश साम्राज्य पर एक बड़ा प्रभाव पड़ा। असफ़ अली ने तुर्की खिलाफत पक्ष का समर्थन किया और प्रवी काउंसिल से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इसे असहयोग के एक अधिनियम के रूप में देखा और दिसंबर 1914 में भारत लौट आये। भारत लौटने के बाद, आसफ़ अली राष्ट्रवादी आंदोलन में एक आंदोलनकारी रूप से शामिल हो गए। 1919 के खिलाफत आंदोलन में शामिल होकर ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। 1920-21 के दौरान गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।

आसफ़ साहब कई बार आज़ादी के आन्दोलनों में भाग लेने के परिणाम स्वरूप गिरफ्तार हुए। 1944 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान आसफ़ अली को जवाहरलाल नेहरू और कई क्रांतिकारियों के साथ अहमदनगर किले की जेल में बंद कर दिया गया था।1 1947 देश आज़ाद होने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले भारतीय राजदूत बने। 1953 स्विट्ज़रलैंड में भरतीय राजदूत रहते हुए उनकी वफ़ात हुई।

आसफ़ अली एक ऐसा बिजनौरी योद्धा है जिसने भगत सिंह की मदद की 11 मई 1888 को बिजनौर के कस्बा स्योहारा मे जन्मे आसफ अली एक काबिल वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे।अली साहब पहले भारतीय थे जो अमेरिका में जाकर भारत के पहले राजदूत नियुक्त हुए। अली साहब ने ओड़िसा के गवर्नर के रूप में भी अपनी सेवाए दी दिल्ली के सेंट स्टेफेन कॉलेज से स्नातक रहे।

1928 में जब उन्होंने अरुणा गांगुली से शादी की.  इस शादी ने कई लोगों की त्योरियां चढ़ा दी थी क्योंकि अली मुस्लिम थे और अरुणा हिंदू. यही नहीं, अरुणा इनसे उम्र में भी 21 साल छोटी थी. मगर  लोगों की नाराजगी के बावजूद दोनों ने एक-दूसरे के साथ रहने का फैसला किया स्वि‍ट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया और वैटिकन में भारत के राजदूत भी रहे इनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार ने इनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया

बिजनौर के युवाओं वाक़ई हमारे जनपद ने हिन्दुस्तान को कई नामचीन हस्तिया दी है मगर अफ़सोस के हम् इतिहास से बहुत दूर है।आसफ़ अली बिजनौरी योध्दा जिसने इस देश के लिए प्राण त्यागने वाले सरदार भगत सिंह जी के बचाव में केस लड़ा लेकिन सत्ताधारियों ने उनके साथ क्या किया। कोई आसाफ़ अली को आज पहचानता तक नही बैरिस्टर साहब जनपद बिजनोर से थे कोई जानता तक नही ।

बिजनौर के युवाओं से अनुरोध है कि वह इस लेख को जरूर पढ़ें और अपनी जड़ों को पहचानें। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में बिजनौर का बड़ा योगदान है जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता।

ब्यूरो चीफ़ बिजनौर एक्सप्रेस की ख़ास रिपोर्ट

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