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आभा शुक्ला मुस्लिम समाज से ज्ञानव्यापी जैसे मामलों में कोर्ट नहीं जाने की अपील कर आई चर्चा में

▪️वहां आपको हारना ही है, ये पहले से तय है, ये आपकी हार नही बल्कि हम सारे सेक्युलर्स की साझा हार होती है…

सोशल एक्टिविस्ट अभा शुक्ला ने लिखा है कि बाबरी विध्वंस पर सुप्रीम कोर्ट का 1000 से ज्यादा का पेज का फैसला मैने बहुत तल्लीनता से पढा है…. कोर्ट ने माना कि वहां मस्जिद थी…..ये भी माना कि मस्जिद ढहाई गयी…. पर भावात्मकता के आधार पर वहां मन्दिर बनाने का फैसला दे दिया……कुछ महीनों बाद बाबरी को शहीद करने वाले भी बाइज्जत बरी हो गये….. आलम ये है कि वो चिल्ला चिल्ला कर कहते हैं कि बाबरी हमने ढहाई और हमें इस कार्य पर गर्व है…. पर कोर्ट कहता है कि नही, तुम दूध के धुले हो….. तो ऐसे में आप क्या उम्मीद कर सकते हो…?

मत जाइए कोर्ट…. मत जाइए ऐसी डिबेट में मीडिया चैनलों पर… आपको अपमान के सिवा वहां कुछ नही मिलेगा… एकपक्षीय फैसले होने दीजिए… दुनिया को देखने दीजिए इसकी पराकाष्ठा… सब गिरा देने दीजिए… ताज महल भी, ज्ञानव्यापी भी, जामा भी… जो करना है करने दीजिए… बस ये तमाशा दुनिया को देखने दीजिए…

▪️मुझे पता है मेरी ये बात बहुतों को बुरी लगेगी… लगती है तो लगे पर अब मुझसे और ये छीछालेदर देखी नही जाती… सॉरी

देख लीजिए न, ज्ञानव्यापी पर कैसे तमाशा चल रहा है… सुबह 4 फिट का शिवलिंग मिला.. दोपहर में 12 फिट का हो गया… रात खत्म होते होते 24 फिट का न हो जाए…. क्या मजाक चल रहा है ये… ज्ञानव्यापी को बाबरी पार्ट टू बनाना चाहते हैं वो और शायद बना भी देंगे… 2024 और 2027 के लिए ये बहुत जरूरी भी है… उनका सत्ता प्राप्ति का रास्ता मस्जिद से ही होकर जाता है… इसलिए मै चाहती हूं कि शतरंज की बिसात पर उनको अकेले ही खेलने दीजिए… आप मत जाइए बेईमानी,प्रपंच और छल का शिकार होने…

इससे पहले उन्होंने लिखा कि कल 50 से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में ज्ञानव्यापी मस्जिद के तहखाने का सर्वेक्षण हो गया है… वहां से कोई मूर्ति नही मिली है… कमल और स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं ईंटों पर… जिससे हिंदू पक्षकार बेहद उत्साहित हैं… जबकि दो संस्कृतियों के मिलन में एक दूसरे की चीजें, चिन्ह आदि को अपनाना इतिहास में बहुत आम बात रही है….

मोहम्मद गोरी के सिक्के पर एक आई बैठी हुई लक्ष्मी का अंकन है तो दूसरी ओर देवनागरी में मुहम्मद बिन साम उत्कीर्ण है… तो इस आधार पर क्या निष्कर्ष निकाल देंगे कि मोहम्मद गोरी हिंदू था…? वो लक्ष्मी जी का भक्त था…. ?

अकबर को तो जानते ही होंगे न आप…अकबर ने राम के प्रति लोगों में आस्था को देख राम सिया पर सिक्का जारी कर ‘तू ही राम है तू रहीम है’ का संदेश दिया था…दीन-ए-इलाही के शुभारंभ के मौके पर अकबर ने इलाही मोहरें चालू की थीं… राम-सीता की छवि वाली खास इलाही मोहर… इस मोहर के एक ओर तीर-धनुष लिए श्रीरामचंद्र अंकित हैं… और उनके पीछे हैं सीता, जिनके दोनों हाथों में कमल के फूल सुशोभित हैं…एकदम ऊपर देवनागरी लिपि में राम-सीता लिखा हुआ है…मोहर के दूसरे पहलू पर ‘आमरदद इलाही 50’ लिखा है… तो क्या कह देंगे कि अकबर,असल में अकबर नही अंबर या असीमानंद था…?

सिकंदर के भारत पर आक्रमण के बाद भारतीय शैलियों में यूनानी शैलियों की विशेषताएं दृष्टिगोचर होने लगीं… तो इसका मतलब क्या है कि यूनानी पूरा भारत मांग लेंगे…? अंग्रेजी वास्तुकला के लाखों उदाहरण भारत में मिल जायेंगे तो इसका क्या मतलब है कि इंग्लैंड वाले जाकर इंटरनेशनल कोर्ट में खड़े हो जाएंगे कि भारत पर हमको कब्जा फिर से दिलाओ… नही न… तो फिर क्या औचित्य है स्वास्तिक और कमल के चित्र मिलने का…

जब दो सभ्यताओं का मिलन होता है… जब दो संस्कृतियाँ नजदीक आती हैं तो दोनो एक दूसरे के प्रभाव से अक्षुण्य नही रह पातीं… दोनो में एक दूसरे की विशेषताएं मिलती ही हैं…. यही तो है साझी विरासत… और क्या है… निजी जीवन से एक छोटा सा उदाहरण ले लीजिए… मुस्लिम महिलाओं की प्रिय शरारा ड्रेस मै किसी किसी मौके पर पहन लेती हूं… मेरी अलमारी में कई ड्रेस मिल जायेंगी… अगर आज मेरा घर ढह जाए और 100 साल बाद खुदाई में मेरी शरारा ड्रेस मिले तो क्या बस इस आधार पर कह दिया जाएगा ये घर किसी मुस्लिम का था…?

उन्होंने लिखा है कि ज्ञानव्यापी मस्जिद विवाद में प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट को पढ़ लीजिए जरा….जिसे 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी….अब कानून क्या कहता है यह भी पढ़ लीजिए- ये कानून कहता है कि आजादी के समय यानी 15 अगस्त 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो हमेशा उसी रूप में रहेगा….

तो बस.. बात खत्म… हाईकोर्ट पहली ही सुनवाई में क्यों नहीं मामला खारिज कर देता… मुझे ये समझ में नही आता… ये तो कोर्ट के द्वारा कानून का मजाक है… अगर कोर्ट ही कानून का सम्मान नहीं करेगा तो आम आदमी क्या करेगा….

या तो सरकार को फ्रंट पर आकर खेलने दीजिए… सरकार आज आए और प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट – 1991 को खत्म करे… कम से कम इतिहास में लिखा तो जाए तो देश में धार्मिक अशांति की जनक कौन सी सरकार रही है…. तब तो ठीक है… वरना इस तरह मीलार्ड का ही कानून का सम्मान न करना बड़ा वाहियात मैसेज है समाज के लिए….

आभा शुक्ला कानपुर, स्वतंत्रत पत्रकार हैं और ये उनके नीजी विचार एवम विश्लेषण हैं

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