🔹नजीबुद्दौला के वंशजों की कब्रों की जर्जर हालत
Bijnor: तैय्यब अली लिखते हैं कि एतिहासिक शहर नजीबाबाद के रोहिल्ला नवाब नजीबुद्दौला (नजीब खान) के मकबरे कि घुमक्कड़ी करने का सौभाग्य मिला मकबरा परिसर में नवाब नजीबुद्दौला के वंशजों की कब्रों की जर्जर हालत देख कर दुख हुआ
ऐतिहासिक मकबरे कि देखरेख जीर्णोद्धार के नाम पर प्राचीन स्वरूप बदलने दीवारों पर प्लास्टिक पेंट करने फर्श पर पत्थर बिछाने प्राचीन नक्काशी को नया रूप देने अनाधिकृत रूप से कब्जा होने के मुद्दे पर नजीबाबाद के जन प्रतिनिधि भी इस मश्ले पर चुप्पी साधे हुए है
मेंने अकसर नजीबाबाद के चार मिनार पत्थर गढ़ किला व यहा कि रहस्यमयी मस्ज़िद मक़बरों आरामगाह शिकारगाह व घने जंगलों और आसपास के सुनसान जगहों की खाक छानी है किला मस्ज़िद और मक़बरों के सन्नाटे को निकट से महसूस भी किया है यहां के स्मारकों मे गहन शांति सुकून है यहां लिखी शिला लेखो ने मन मोह लिया इतिहास तलाश करने की कोशिश इस लिए करता रहा हूँ क्योंकि कोई न कोई महत्वपूर्ण कड़ी जरूर सामने आएगी,
सन 1707 में जन्मे नजीबुद्दौला ने सन 1752 में ऐतिहासिक शहर नजीबाबाद को बसाया था
नवाब नजीबुद्दौला इस मकबरे में दफन हुए थे यहीं पर उनके खानदान से जुड़े लोगों की कब्रे भी है यहा और भी ऐतिहासिक धरोहरें हैं जैसे बारहदरी नवाबी इमारत चार मीनार नवाबी महलसराय नगरपालिका कार्यालय के सामने ऐतिहासिक दरवाजा जहां पर नजीबुद्दौला का दरबार चलता था यही से एक सुरंग पत्थरगढ़ किले को जोड़ती थी सुरंग भी गुमनामियों में खो चुकी है
नजीबुद्दौला कि कब्र के पास लोग खड़े होकर रोहिल्ला काल के बिखरे पन्नों के साथ सेल्फी लेने में मशगूल देखे जाते हैं लेकिन किसी को खबर नहीं है कि उनके सामने ही नवाब नजीबुद्दौला इस कब्र में सोये हुए है इस मकबरे को देखने के लिए बिजनौर जनपद से बड़ी संख्या में देखने आते हैं मकबरे के अन्दर परिसर में नजीबुद्दौला मस्जिद भी है
इस मकबरे के बाहर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा बोर्ड भी लगाया गया है जिस पर लिखा है ऊंची दीवारों से घिरा ये चतुर्भुजीय अहाता मूल रूप से मकबरा है जिसका प्रवेश द्वार पश्चिम में है इसका निर्माण जाबिता खान ने करवाया था।
इस अहाते के दक्षिणी हिस्से नजीबुद्दौला व उन कि पत्नी सहित परिवार के सदस्यों कि कब्रे है मस्जिद के साथ मकबरा होना शायद यह पहली बार हुआ है यह शायद सलजुकियान रवायत से मुतासिर होगा
नवाब नजीबुद्दौला सन 1757 से 1770 तक सहारनपुर के राज्यपाल रहे बाद में देहरादून पर भी शासन किया नजीबुद्दौला मुगल सल्तनत के वजीर सफदरजंग को पीछे छोड़ते हुए मुगल सम्राट आलमगीर द्ववितीय के समर्पित सेवक बने और बाद में आखिरी समय मे नजीबखान से नजीबुद्दौला के नाम से जाने गये
14 अक्तूबर 1770 को नवाब नजीबुद्दौला का मोदीनगर के पास हिंडन नदी के तट पर हुए युद्ध में इंतकाल हो गया था नवाब नजीबुद्दौला के मकबरे में उनके अवशेष दफन हुए यहीं पर उनके खानदान से जुड़े लोगों की कब्र भी है
बाद मे सन 1857 में नवाब नज़ीबुद्दौला के उत्तराधिकारी नवाब दुंदू खान ने अंग्रेजों के विरुद्ध बग़ावत करदी थी जिस कारण नजीबाबाद रोहिल्ला रियासत ज़ब्त कर ली गई और उसका एक भाग अंग्रेजों द्वारा रामपुर कि रियासत को दे दिया गया था
प्रस्तुति—————तैय्यब अली