Bijnor: कितने घिनौने हैं कुछ लोग जो नेताओ के इशारे पर आपस में हिंदू-मुसलमान का खेल खेलते हैं शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को हमारे देश की पुरानी सभ्यता तो ये है कि हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई-भाई है लेकिन वोट की खातिर कुछ लोगों ने अपनी तुच्छ मानसिकता के चलते आपस में सबको बाट दिया है आप भाईचारे की भावना को पसंद करते तो इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें,
हिन्दू-मुस्लिम एकता का इतिहास संजोये यह
मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी हैं यह मस्जिद आज भी आपसी सौहार्द की मिसाल है आजादी से पूर्व यह पूरा गांव कभी मुस्लिम बाहुल्य हुआ करता था मगर विभाजन के समय यहां के बाशिंदे पाकिस्तान चले गये थे वर्त्तमान समय मे गांव में जाट परिवार बहुतायत मे रहते हैं दशको से गांव के ही रहने वाले स्कूल मास्टर चौधरी धीर सिंह मस्जिद की देख भाल करते थे,
मस्जिद की देखभाल उनके बाद उनके पुत्र चौधरी छत्रपाल सिंह करते हैं तथा तीज त्योहारों पर मस्जिद की देख भाल और साफ सफाई भी करते है
आजादी के दौरान इस गांव से अल्पसंख्यक समाज के पलायन के बाद बचे हुए मुस्लिम परिवार भी पड़ोस के शहरो मे जा बसे तब से गांव में बनी मस्जिद की देखभाल जाट समाज के लोग कर रहे हैं,
अक्सर इस मस्जिद के दरवाजे पर ताला लगा रहता है। लेकिन बावजूद इसके गांव के लोग अकसर ताला खोलकर मस्जिद में साफ सफाई करते रहते हैं ईद, बकरा ईद के मौके पर मस्जिद की रंगाई पुताई भी करायी जाती है
गांव मे एक भी मुस्लिम परिवार न होने के कारण
हीमपुर मानक उर्फ बढ़ापुर के जाट समाज के लोग मस्जिद को गांव की अनमोल धरोहर मानते हैं इस गांव में केवल जाट समाज के लोग निवास करते हैं गांव की आबादी के बीचों बीच यह मस्जिद आज भी यहां मुस्लिम समाज के अतीत की कहानी बयां करती है यहां के ग्रामीणो ने मुझे बताया कि गांव की इस मस्जिद की देखभाल हमारी प्राथमिकता है गांव के सभी लोग कर दुनिया को भाईचारे व मानवता का संदेश दे रहे हैं
15 अगस्त 1947 में भारत को ब्रिटिश राज से आजादी मिली थी लेकिन अंग्रेजों ने जाते-जाते देश को दो टुकड़ों में बांट दिया था विभाजन के दौरान अनेको मुस्लिमों ने भारत के बजाय पाकिस्तान में रहना पसंद किया था लेकिन पाकिस्तान में उन्हें महज तिरस्कार और गुमनामी के सिवा कुछ नहीं मिला भारत में रहते हुए बहुतायत मुस्लिम अपनी बेहतर जगह बनाने में कामयाब रहे हैं
आज हीमपुर मानक उर्फ बढ़ापुर गांव के लोगो ने मेरा ‘राम राम’ कहकर अभिवादन किया मेने गांव के जीवन से लेकर भोजन तक बहुत सी चीजों के बारे में ग्रामीणो से बात की मुझे बहुत अच्छा लगा यह गांव राजनेताओं व राजनिति से काफी दूर हैं बहुत ही शांत व शांतिप्रिय गांव है
बिजनौर एक समृद्ध ऐतिहासिक भूमि है बिजनौर जनपद के हर कोने में इतिहास छुपा हुआ है जो ना केवल भारत की संप्रभुता एवं अंखडता का प्रतिक है बल्कि भारत की संस्कृति की जीवंत उदाहरण है बिजनौर में कई ऐसी ऐतिहासिक चीजें उपलब्ध है जो भारत के गौरवमयी इतिहास को प्रदर्शित करती है बिजनौर एक ऐसा जनपद है जहां मुगलकाल से लेकर मध्य काल एवं वर्तमान काल तक के साक्ष्य मौजूद हैं
यहां प्राचीन भारत की सभ्यता को प्रदर्शित करती हड़प्पा कालीन संस्कृति के भी पुख्ता प्रमाण है और धार्मिक परंपराओं को दिखलाते रामायण काल मे आता है वाल्मीकि रामायण मे इस क्षेत्र को प्रलंब तथा उत्तरी कारापथ कहा गया है भगवान श्रीराम के छोटे भाई शेषावतार भगवान लक्ष्मण के पुत्रों मे एक परम् प्रतापी चन्द्रकेतु को इसी जनपद में उत्तरापथ का राज्य सौंपा गया था उत्तरी कारापथ बिजनौर के मैदानों से लेकर शगढ़वाल तक का सम्पूर्ण क्षेत्र प्राचीन काल मे लक्ष्मण के पुत्रों के अधिकार मे रहा था
बिजनौर ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं कई एतिहासिक नदियाँ बहती है जेसे गंगा नदी,मालिनी नदी,विदुर कुटी, पत्थरगढ किला,सैँदवार, नजीबुद्दोला का मकबरा,अकबर के नवरत्न अबुल फ़जल फैज़ी, क़ायम चाँदपुरी, नूर बिजनौरी, रिफत सरोश कौसर चांदपुरी, डिप्टी नजीर अहमद अख्तर उल इमान,निश्तर खानकाही, कयाम बिजनौरी, अफसर सज्जाद हैदर यलदरम विश्वप्रसिद्ध लेखक इस मिट्टी से पैदा हुए महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा पं. पद्मसिंह शर्मा, प्रसिद्ध ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार विख्यात क्रांतिकारी शिवचरण सिंह त्यागी भी बिजनौर की धरती की देन हैं फिल्म जगत ने प्रकाश मेहरा शाहिद बिजनौरी बिजनौर के साहित्यकार अशोक मधुप, भोला नाथ आज भी बिजनौर का नाम रोशन कर रहे हैं
आप भी कभी बिजनौर भ्रमण करने के लिए जरूर आईये बिजनौर को और करीब से जानने के लिए आप यहां के एतिहासिक स्थलों का दौरा अवश्य करें जो ना केवल आपकों भारत के समृद्ध इतिहास की जानकारी देगा बल्कि आपकों भारत की एक ऐसी यात्रा पर ले चलेगा जहां आपकों स्वंय का जानने का मौका मिलेगा
प्रस्तुति————-तैय्यब अली