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Bijnor: नजीबाबाद के रोहिल्ला नवाब नजीबुद्दौला के बेटे ज़ाबीता खान ने दिल्ली में शाही मस्जिद ज़ब्तागंज की स्थापना की थी

New Delhi: जाब्तागंज मस्जिद दिल्ली इंडिया गेट के बिलकुल नजदीक है इस मस्जिद में ऊंची मीनारे आलीशान गुंबद तो नहीं है लेकिन यह मस्जिद बेहद खूबसूरत है मस्जिद के अहाते में एक छोटा सा तालाब भी है जिसे वजु के लिए बनाया गया थस आज कल इंडिया गेट या लुटियंस जोन में जाने वाले पर्यटक यहां नमाज अदा करते हैं

ज़बीता खान को‌ नवाब नजीबुद्दौला का बड़ा बेटा व सन 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान अपने पिता के साथ लड़ने के लिए जाना जाता है उस के बाद दिल्ली में मार्च सन 1768 में नजीबुदौला ने अपने नेतृत्व को सेवानिवृत्त कर बड़े बेटे जबीता खान को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था

उस के नवाब नजीबुद्दौला पूरे लाव लश्कर के साथ नजीबाबाद मगल सराय आए थे उस नजीबुद्दौला के नजीदीकी अली मुहम्मद कुर और सैय्यद मियां इसरारुदीन भी साथ थे नजीबाबाद कुछ माह गुजारने के बाद 15 अक्टूबर सन 1769 को नजीबुदौला दिल्ली चले गये थे जहां ज़बीता खान की मेजबानी डोवेगर महारानी और क्राउन प्रिंस ने की थी सन 1770 को अपने पिता की मृत्यु के समय जबीता खान को उत्तर भारत में दूसरा सबसे अमीर व्यक्ति कहा जाता था

अपने पिता के सबसे बड़े बेटे के रूप में उन्हें 29 दिसंबर 1770 को शाह आलम द्वितीय द्वारा मीर बख्शी (मुगल सेना के प्रमुख) के रूप में नियुक्त किया गया था उनके शासन के दौरान मराठों ने 1771 में पहले दिल्ली और फिर 1772 में रोहिलखंड पर कब्जा कर लिया था तब अवध के नवाब शुजाउद्दौला को भी अपनी छावनी से भागने के लिए विवश होना पडा था

नजीबाबाद रेलवे स्टेशन के नजदीक नवाब नजीबुद्दौला का मकबरा भी जहां उनके अवशेष हिंडन नदी से यहां लाकर दफन किये गये थे मकबरे के नजदीक उनके खानदान से जुड़े लोगों की कब्रे भी है यह सभी ऐतिहासिक धरोहरें आज अपना अस्तित्व बरकरार रखने में सरकारी उपेक्षा की शिकार हैं।

नवाब जाबिता खान‌ के नाम पर‌ मोहल्ला जाब्तागंज भी नवाबी इमारतों कि तरह गुमनामी में खो चुका है क्योंकि नजीब खान के नाम का एक पत्थर भी कही दिखाई नही देता बल्कि रोहिल्लाओ कि‌ सम्पत्ति भूमाफिया पूरी तरह से निगल चुके हैं ऐतिहासिक धरोहर नवाबों का महलसराय क्षेत्र भी इतिहास बन चुका है जहां नगरपालिका कार्यालय के सामने ऐतिहासिक नवाबों का दरबार चला करता था यहां से एक सुरंग भी थी जो पत्थरगढ़ किले को जोड़ती थी सुरंग भी गुमनामियों में खोई हुई है

सभी नवाबी धरोहरे एक-एक कर इतिहास बनने की कगार पर पहुंच चुकी हैं नजीबाबाद मे नेतागीरी तो‌ लखनऊ से भी ज्यादा है परंतु यहां की सुध लेने वाला फिलहाल कोई नजर नहीं आता वह समय दूर नहीं जब 21वीं सदी के समाप्त होने तक नजीबाबाद कि एतिहासिक धरोहरे अपना अस्तित्व खो बैठेंगीं

नोट:- यदी आप को नजीबुद्दौला के परिवार कि और अधिक जानकारी चाहिये तो
(1)सरगुज़श्त नवाब नजीबुद्दौला’
(2)‘तारीख़-ए-खुर्शीद जहां’
नामक पुस्तकों का अध्ययन जरूर करे

प्रस्तुति————-तैय्यब अली

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