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#सरवर की #नाले की #होज की और #स्टेशन की जनाब चार मस्जिदे हदूरबा नजीबाबाद

#सरवर की #नाले की #होज की और #स्टेशन की जनाब चार मस्जिदे हदूरबा नजीबाबाद——–
नजीबाबाद की इस जामा मस्जिद को
नजीबाबाद के नवाब नजीबुद्दौला के नवासे नवाब जहांगीर खान कि बेवा बीबो बेगम ने बनवाया था

इस मस्जिद को बीबो बेगम के सपनों की इबारत क्यो माना जाता है कियू कि बीबो बेगम ने अपने मेहर कि रकम से सन 1800 के लगभग मस्जिद का निर्माण कराया था

यूँ तो यह जामा मस्जिद कई मायनो में दूसरी मस्जिदों से जुदा है इसकी पहचान किसी की मोहताज नहीं है सदियों बाद भी यह अपनी आन-बान और शान से रोहिल्ला पठान सल्तनत के सुनहरे काल का गुणगान कर रही है इसकी दीवारों में नवाबी सल्तनत की स्थापत्य कला रची बसी है इसमें एक साथ करीब 2 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं

पर इसकी खासियत इतनी भर नहीं है किदवँतिया हैं कि बीबो बेगम ने सपना देखा नजीबाबाद मे अल्लाह का सबसे ऊँचा दरबार बनाने का और उस सपने की ताबीर बनी यह जामा मस्जिद!
तो आईए इतिहास के पन्नों को पलटकर एक बार फिर से इसके बनने की कहानी को पढ़ने की कोशिश करते हैं-

नजीबुद्दौला के नवासे नवाब जहांगीर खान कि जीवन सराय मे मौत के बाद बेगम बीबो टूट गयी थी उन्होंने नवाब की याद मे चारमीनार बनवाया था जिस के नजदीक बीबो वाली बगीया बारह दरी हुआ करती थी

नजीबुद्दोला का महलसराय मे उंचा तख़्त हुआ करता था बीबो बेगम चाहती थी कि खुदा का दरबार उनके दरबार से ऊंचा हो इतना ऊंचा कि खुदा के घर का फर्श उसके तख्त-ताज से ऊपर हो
इसके लिए महल सराय के ठीक सामने चन्द मिन्टो की दुरी पर जामा मस्जिद
बनाने के लिए चुना गया

मस्जिद जब तैयार हुई तो इसके इमाम को लेकर भी काफी जदोजहद हुई बीबो बेगम चाहती थी कि इस खास मस्जिद के इमाम भी खास हों काफी समय तक इमाम की तलाश की गई जो बिजनौर के एक छोटे से शहर नगीना में जाकर ख़त्म हुई

इमाम के लिए यहाँ से एक नाम सामने आया और वो था सैय्यद अब्दुल गफूर शाह का सैय्यद अब्दुल गफूर शाह की इमामी में जामा मस्जिद में पहली बार नमाज अदा की गई इस दिन नजीबाबाद किरतपुर की अवाम के साथ नवाब और उनके सभी दरबारियों ने पहली बार जामा मस्जिद में नमाज़ अदा की.

यहाँ आने वाले स्लाम धर्मावलम्बी अपने आप इबादद में लग जाते हैं. क्योंकि यहाँ चारों तरफ इबादद का माहौल है जिसका सपना बीबो बेगम ने देखा था.
आज भी यहाँ जुमा अलविदा ईद ईद-उल-अजहा में यहां पर करीब 2 हजार से अधिक लोग नमाज अदा करते हैं. रमजान के महीने में यहां बहुत भीड़ होती है मस्जिद के मेम्बरो, मेहराब, सेहन गुम्बद सब आलीशान है

यह मस्जिद भव्यता की जीती जागती निशानी है इसकी मीनार व दरों दीवार पर नवाबी नक्काशी इतनी खुबसूरत है कि इस पर से नज़र नहीं हटती मस्जिद के चार का दरवाज़े थे जो इसकी शान को और भी दुगना करते थे अब एक मे गेट बना दिया गया है
यहां से एक सुरंग महावतपुर क्षेत्र स्थित पत्थरगढ़ के किले को जोड़ती थी। सुरंग की स्थिति भी गुमनामियों में खोई हुई है।

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